Ticker

6/recent/ticker-posts

वह ब्रह्म ही विश्व के कण-कण में रम रहा है। That Brahm is roaming in every particle of the world.

brahm

वह ब्रह्म  ही विश्व के कण-कण में रम रहा है। 


ईशावास्यमिदंसर्वं,           यत्किंच जगत्यां जगत्।

तेन त्यक्तेन भुंजीथाः,  मा गृधः कस्यस्विद्धनम्।।

यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 1

’’ऐ मनुष्य! जगत् में जो कुछ भी है उस सब में वह ईश्वर अधिष्ठित है। इसलिये तू त्याग भाव से इस संसार का उपभोग कर। कभी किसी की वस्तु पर लालच भरी आँख न रखना-यह मन ही मन निश्चय कर ले कि तेरा यहां कुछ भी अपना नहीं है।’’

इस वेदमन्त्र में श्री भगवान मनुष्यों को तीन सच्ची बातें सिखलाते हैं :-

1-वह ब्रह्म  ही विश्व के कण-कण में रम रहा है।

2-अतः तू संसार के समस्त पदार्थों का सेवन तो कर किन्तु उस विश्वपिता परमात्मा का ध्यान रख लेना।

3-तू संसार का दीवाना न बन क्योंकि इसने तेरा साथ निभाना नहीं है।

आज के युग में विरले ही मनुष्य ऐसे दिखाई देंगे जो इन तीन प्राणदायक कर्त्तव्यों का परिपालन करते हों। अधिकांश लोग संसार और संसार के पदार्थों के संचय करने में दिन रात निरत हैं वे इस तथ्य को भूल ही गये हैं कि हर एक वस्तु में वही ब्रह्म  उस का रचयिता विद्यमान है। प्रत्येक प्राणी में भी वही ब्रह्म  स्थित है। ऐसा पदार्थ कोई भी नहीं जिसमें ब्रह्म  देव विराजमान न हों-वह निराकार परम चेतन, सर्व शक्तिमान् ब्रह्म   ही पदार्थ के रूप में हमारे हाथ में आ गये हैं। जो इन्द्रिय जिस वस्तु का सेवन करती है-जिससे वह वस्तु मिली है-सभी में ब्रह्म की सत्ता निर्विकार रूप में वर्तमान है। इस सत्य को हृदय से स्वीकार करना ही वस्तुतः ब्रह्म  का दर्शन करना है। यह एक अचल सत्य है। आवश्यकता तो इस बात की है कि मनुष्य इस सुने, पढ़ें, इस पर मनन करें, इसे अपनी बुद्धि में जगह दे और फिर नामदेव भक्त की तरह वह भी रूखी रोटी उठा कर ले जाने वाले कुत्ते के पीछे घी लेकर भागने लगेगा और कहेगा कि अरे ब्रह्म रूप! घी तो लगा ले-काहे को रूखी रोटी खाता है ? उसके छप्पर को जब आग लग गई और कुछ भाग उसका जल गया तो नामदेव भक्त क्या करता है कि बाकी बचा हुआ सामान भी आग में झोंक देता है-और कहता है कि हे मेरे अग्नि रूप परमात्मन्! आप भूखे क्यों रहते हो ? सारी कुटिया ही मेरी खा लो-जिससे आप की तृप्ति हो जाय-इसे कहते हैं ब्रह्म में जीना।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ