श्री सनकादि मुनि।
Sanat Kumara Story In Hindi
जग के कल्याण के लिए भक्ति ही श्रेष्ठ साधन
Devotion is the best means for the welfare of the world
ब्रह्मा जी के चारों मानस पुत्र
Four Kumaras In Hindi
भक्ति कथा प्रारम्भ
Devotional Story Begins
सनक - सनन्दन - सनातन और सनत्कुमार
Sanak - Sanandan - Sanatan And Sanatkumar
संत सत्पुरुष सदैव मानवता का कल्याण चाहते हैं और मानवता को सुख शांति का मार्ग दर्शाते हैं। मानव यदि अपने धर्म का पालन करे तो उसे सुख और शांति का अनुभव होता है। यदि अधर्म पर चले तो स्वयं के लिए और दूसरों के लिए दुःख एवं कष्ट देने वाला बन जाता है।
सभी धर्मग्रंथों में मनुष्य को सदुपदेश देने के लिए परोपकारी महान पुरुषों के जीवन प्रसंग और कथाएं भरी हुई हैं। उनके पठन - पाठन और श्रवण - मनन से मनुष्य को अपने धर्म का पालन करने की प्रेरणा मिलती है। इन प्रसंगों से हमें सत् और असत् का बोध प्राप्त होता है।
प्रभु की भक्ति मानव का सर्वश्रेष्ठ धर्म है , यह सभी सद्ग्रन्थों व संतों का मत है। युगजीवी होने से वे युग -युग में भक्ति के प्रचार हेतू स्थान - स्थान पर विचरण भी करते हैं और तत्कालीन युगपुरुषों से मिलकर उनसे सत्संग वार्ता करते हैं। उनके ऐसे अनेक प्रसंग ज्ञान व विवेक से भरे हुए पौराणिक ग्रंथों में प्राप्त होते हैं।
त्रेतायुग में सनकादि मुनियों का मिलान मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम से हुआ। श्री रामचरितमानस में इस मिलन का एक बड़ा ही सुन्दर प्रसंग है जो भगवद्भक्तों के लिए आत्मोन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। इस प्रसंग में जनसामान्य के लिए भी बहुत बड़ी शिक्षा दी गई है। भगवान ने अपने भ्राता भरत जी को संतों के लक्षणों और गुणों का विशद वर्णन किया है।
श्री सनकादि मुनि और श्री राम मिलन
।। चौपाई ।।
भ्रातन्ह सहित रामु एक बारा।
संग परम प्रिय पवनकुमारा।।
सुन्दर उपबन देखन गए।
सब तरु कुसुमित पल्लव नए।।
जानि समय सनकादिक आए।
तेज पुंज गन सील सुहाए ।।
ब्रह्मानंद सदा लयलीना।
देखत बालक बहुकालीना।।
।। दोहा ।।
देखि राम मुनि आवत , हरषि दंडवत कीन्ह।
स्वागत पूँछि पीट पैट , प्रभु बैठन कहँ दीन्ह।।
(उत्तरकांड)
भगवान श्री राम जी का ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों से मिलन
सनक - सनन्दन - सनातन और सनत्कुमार
Sanak - Sanandan - Sanatan And Sanatkumar
भगवान श्री राम जी का लंका विजय के पश्चात् अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ। अयोध्या में रामराज्य कायम हुआ और अति उत्तम राज्य व्यवस्था का संचालन होने लगा। एक दिन प्रभु अपने सभी भ्राताओं सहित नगर के बाहर उपवन में सैर करने पहुँचे जहाँ सब पेड़ - पौधे नई हरियाली से भरपूर थे। साथ में प्रभु के परमप्रिय पवनसुत हुनमान जी भी थे।
एकांत समय का अति उत्तम अवसर जानकर महान मुनि सनकादि ब्रह्मलोक से प्रभु से मिलने वहाँ पहुँचे। ये चारों महामुनि - श्री सनक जी , श्री सनातन जी , श्री सनन्दन जी और श्री सनत्कुमार जी अति शीलवन्त , गुणागार तथा ब्रह्मानंद में रहने वाले महान तपस्वी हैं। ये दूर से आते हुए ऐसे शोभायमान हो रहे थे , मानो चारों वेद साकार तेजपुँज रूप में आ रहे हों। चारों मुनिकुमार बहुयुगी होने पर भी माया के भेद से परे , समदर्शी बालरूप में सुशोभित थे।
श्री भगवान राम जी मर्यादापुरुषोत्तम थे। भगवान ने सुन्दर मर्यादा का आदर्श स्थापित किया। सुप्रसिद्ध संत मुनियों को आते देख उन्होंने हर्षित होकर उन्हें दंडवत वंदना की। हनुमान जी सहित चारों भ्राताओं ने भी दंडवत वंदना की। भगवान राम जी ने उनसे कुशल पूछते उनका स्वागत किया।
नगर से बाहर होने के कारण वे तत्काल सिंहासन आदि की व्यवस्था नहीं कर सकते थे। अतः उनके स्वागत में भगवान ने अपना पीतपट (पीताम्बर) बिछा दिया। चारों मुनिजन प्रेमविभोर सजलनयन श्री प्रभु के दर्शन करने लगे। यह दिव्यात्माओं का मिलन था।
इस प्रभु मिलन में मुनियों की प्रेमदशा देखकर स्वयं श्री प्रभु भी प्रेममग्न होने लगे। दिव्यात्माओं के इस आत्मीय मिलन का आनन्द वाणी से वर्णन नहीं किया जा सकता। सर्वदा ब्रह्मलोक में निवास करने वाले ब्रह्मनिष्ठ महान तपोनिधि महामुनि भगवान की मर्यादा और वचन अत्यंत ही महत्वपूर्ण हैं। स्वयं त्रिलोकीनाथ होने पर भी उन्होंने सत्संगति , संत दर्शन और उनकी महिमा को अपने वचनों से जगत में प्रकार प्रकट किया -
।। चौपाई ।।
कर गह मुनिवर बैठारे।
परम मनोहर वचन उचारे।।
आज धन्य मैं सुनहु मुनीसा।
तुम्हरे दरस जाहिं अघ खीसा।।
बड़े भाग पाइब सत्संगा।
बिनहिं प्रयास होहिं भव भंगा।।
भगवान श्री राम जी ने मुनिजनों के बैठ जाने पर बहुत ही मनोहर वचन उच्चारण किये - हे मुनिश्वरों , सुनो ! आज मैं धन्य हो गया। आपके दर्शन से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। बड़े ही भाग्य से ऐसा सत्संग मिलता है। ऐसे सत्संग से बिना प्रयास के ही भव का बंधन कट जाता है। संगति का प्रभाव जग विदित है -
संतसंग अपबर्ग कर , कामी भव कर पंथ।
कहहिं संत कबि कोबिद , श्रुति पुराण सद्ग्रन्थ।
अर्थात संत - संग मोक्षदायी और कामनायुक्त संसारी संग भवसागर में डुबोने वाला होता है। यह सब ज्ञानी , कवि , वेद , शास्त्र और पुराण आदि सद्ग्रन्थ कथन करते हैं।
भगवान की यह वाणी सुनकर चारों महाज्ञानी महामुनि परमानंद , करुणानिधान , मनोकामना पूर्ण करने वाले श्री भगवान की बार - बार स्तुति करते हैं। श्री भगवान से दुर्लभ अनपायिनी प्रेम - भक्ति का वरदान मांगकर ब्रह्मलोक पधार जाते हैं।
।। दोहा ।।
परमानंद कृपायतन मन परिपूरन काम।
प्रेम भगति अनपायिनी देहु हमहि श्रीराम।।
उक्त प्रसंग में अनपायिनी भक्ति की माँग श्री प्रभु से की गयी है। यह बहुत ऊँची माँग है क्योंकि बहुत ऊँची भक्ति का वर माँगा गया है। अनपायिनी भक्ति का अर्थ है - अपने इष्ट के श्री चरणों में ऐसा प्रेम जो निरन्तर बढ़ता रहे , जिसका कभी ह्रास न हो। वास्तव में ऐसा प्रेम उसी भक्त के हृदय प्रकट होता है जो पूर्णतः निष्काम हो। न तो मन में कोई सांसारिक सुख - समृद्धि की कामना हो और न ही पारलौकिक सुख - समृद्धि की कामना हो और सुख - दुःख , हानि - लाभ आदि में सम हो। अनेक कष्ट और विपत्तियां आ जाने पर भी जो अपने इष्ट के प्रेम में निमग्न रहें।
इस प्रकार जियें जैसा कि आपको कल ही मरना है ,
और ज्ञान अर्जित इस प्रकार करें जैसा कि आपको सदा जीना है।
" Live as if you were to die tomorrow.
Learn as if you were to live forever. "
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