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क्या संतों की और संसारियों की अलग - अलग दो रामायण हैं ? Are there two different Ramayanas of saints and of worldly people? अखंड रामायण पाठ इन हिंदी अखंड रामायण पाठ के लाभ रामायण पढ़ने की धुन रामायण कथा हिंदी

Shri Ramayan


क्या संतों की और संसारियों की अलग - अलग दो रामायण हैं ?Are there two different Ramayanas of saints and of worldly people?

संतों की और संसारियों की रामायण में बड़ा अन्तर है।  प्रश्न उठता है कि क्या संतों की और संसारियों की अलग - अलग दो रामायण हैं ? उत्तर यह है कि नहीं , दो रामायण नहीं हैं। रामायण तो एक ही है परन्तु उसके पढ़ने वालों के दृष्टिकोण दो हैं।  इसे सन्त भी पढ़ते हैं और संसारी भी पढ़ते हैं परन्तु विचारधाराएँ दोनों की अलग -अलग हैं ; और ऐसा होना भी जरुरी है क्योंकि एक तो भक्तों और संसारियों के विचारों में स्वाभाविक ही अन्तर होता है यानि भक्तों और संसारियों का आदि से मेल ही नहीं बन पाया , ऐसा सद्ग्रन्थ कहते हैं। दूसरा यह कि इस रामायण में समय की आवश्यकतानुसार बड़ी युक्ति और नीति से काम लेते हुए गोस्वामी जी ने दोनों प्रकार का सामान इसमें भर दिया है। 

राम चरित्र मानस पाठ हिंदी में 

गृहस्थ आश्रम की नीति और भक्ति की नीति - दोनों नीतियां इसमें पायी जाती हैं। यही कारण है कि इस ग्रन्थ में अपनी - अपनी आवश्यकता का सामान मिलता है। अर्थात यह रामायण संसारी और पारमार्थिक दोनों प्रकार के सामान से मिला - जुला ग्रन्थ है। लेकिन संतों की रामायण और संसारियों की रामायण में अन्तर कितना है , इसका निर्णय आगे होता है। संसारियों की रामायण तो इस नीचे लिखे एक ही श्लोक में आ जाती है। 

एक श्लोकि रामायण 

आदौ राम , तपोवनादि गमनं , हत्वा मृगं काञ्चनम ,
वैदेही हरणं , जटायु मरणं , सुग्रीव सम्भाषणम। 


बाली निर्दलनं , समुद्र तरणं , लंकापुरी दाहनं ,
पश्चाद्रावण कुम्भकर्ण हननं , चैतद्धि रामायणं।।

अर्थात आदि में राम हुए और वे तप करने के निमित्त वन को चले गये , वहाँ वे स्वर्ण के मृग को मारने गये। पीछे से रावण सीताजी को हर ले गया।  जटायु ने रावण के रथ को रोककर मुकाबला किया परन्तु रावण के हाथों जटायु मारा गया।  तब सुग्रीव ने मैत्री बाँधकर बालि का वध किया। तब महाबीर जी को समुद्र पार भेज कर लंका को जलाया। बाद में रावण और कुम्भकर्ण को मार कर सीताजी को वापस अयोध्या में लाये, यही रामायण का तत है , ऐसा संसारी मानते हैं। यानि श्री राम अवतार से लेकर उनके राजतिलक तक संसारियों की रामायण समाप्त हो जाती है अर्थात संसारियों की दृष्टि में , इस कहानी का नाम ही रामायण है। 

लेकिन संतों की रामायण तो बड़ी विशाल है। रामायण के सात काण्ड हैं -पहला बालकाण्ड , दूसरा अयोध्या काण्ड , तीसरा अरण्य काण्ड , चौथा किष्किन्धा काण्ड , पाँचवां सुन्दर काण्ड , छटा लंका काण्ड और सातवां उत्तर काण्ड। इन सातों काण्डों में जगह - जगह पर भक्ति और परमार्थ का सामान जो गौसाईं जी ने भरा है , तेलिया बुद्धि रखने वाले बुद्धिमान अगर उसके एक - एक अंग का विस्तार करें तो न जाने कितने ग्रन्थ रचे जायें। 

सत्य यह है कि तुलसीकृत रामायण भक्ति और परमार्थ का समुद्र है। जैसे समुद्र में गोता लगाने वाले उसमें से बहुमूल्य मोती निकाल लाते हैं, ऐसे ही पारमार्थिक विचार अथवा रूहानी दिमाग रखने वाले संस्कारी जीव जब दीर्घ विचार के साथ इसको पढ़ते हैं , तो वह निहाल हो जाते हैं और उनके अन्तर में ज्ञान , वैराग्य और भक्ति की विचारधाराएं प्रफुल्लित होती हैं।  

क्योंकि इस ग्रन्थ के अन्दर जहाँ श्री राम अवतार की सुन्दर कहानी और सगुण लीलाएं तथा चरित्र हैं , वहाँ इसमें ज्ञान , वैराग्य , योग और भक्ति के गूढ़ रहस्यों का खजाना भी मौजूद है।  लेकिन हर इक मनुष्य अपनी जरुरत को देखता है और अपनी अनुकूलता का सामान चुनता है।  

संसारियों की आँख अपनी है और भक्तों की नजरें अपनी हैं।  जिसकी दृष्टि जैसी होती है , वह वैसा देखता है , इसमें आपत्ति की कोई बात नहीं , बल्कि भक्त तो उस राम कहानी को भी पारमार्थिक दृष्टि से ही देखते हैं।  

ऊपर वर्णन किये गये सातों काण्डों में जगह - जगह पर गौसाईं जी ने सत्संग भर दिया है , परन्तु फिर भी बालकाण्ड के आदि तथा उत्तर काण्ड के अंत में जो सत्संग की गंगा बहाई है इसको तो विरले सन्त  ही जानते हैं।  जैसे कहा है -

बाल का आदि , उत्तर का अंत। 
यह कोई जानें , विरले सन्त। 

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