Ticker

6/recent/ticker-posts

Bhagwan Shri Ram Chandra Ji Ka Ayodhya Aagman.Bharat Ji Ka Prabhu Shri Ram Chandra Ji Se Milan. भरत जी का प्रभू श्री रामचन्द्र जी से मिलन।

Bharat Milap


Deepawali (Diwali) Kyon Manai Jati Hai?

Deepawali (Diwali) Kya Hai?


Bhagwan Shri Ram Chandra Ji Ka Ayodhya Aagman.
Bharat Ji Ka Prabhu Shri Ramchandra Ji Ke Shri Charan Kamlon Me Ananya Anurag.

भरत जी सोच रहे हैं कि श्री भगवान के अयोध्यापुरी में लौट कर आने के लिये चौदह वर्षों की अवधि में केवल एक ही दिन शेष रह गया है। ऐसा विचारते हुए कि क्या कारण है ? जो मेरे प्रभू के आने का समाचार नहीं आ रहा ,  मन ही मन में अत्यन्त दुखी हो रहे हैं। क्या मुझे कुटिल जानकर मेरे प्रभू ने मुझे भुला तो नहीं दिया ?  अहा ! धन्य हैं लक्ष्मण जी , वे कितने भाग्यशाली हैं जो प्रभू  के चरणों में रहकर सेवा कर रहे हैं।  मुझ को तो मेरे भगवान ने खोटा और कपटी जानकर अपने संग में न लिया।  यदि मुझ में भक्ति होती तो अवश्य मेरे प्रभु मुझे भी साथ ले जाते।  यह सब मेरे अपने ही कर्मों का दोष है।  
फिर सोचते हैं कि मैं इतना नीच हूँ कि यदि मेरे भगवान मेरी करनी की ओर निहारें तो सौ करोड़ कल्प तक भी मेरा निस्तार नहीं हो सकता। परन्तु मुझे विश्वास है कि भगवान बड़े दयालु हैं , वे अपने दासों के अवगुणों को नहीं देखते क्योंकि वे दीनबन्धु हैं और अति कोमल स्वाभाव रखते हैं।  वे मेरे अवगुणों को नहीं देखेंगे और अपने कृपालु स्वभाव से मुझे अवश्य दर्शन देंगे।  ऊपर वर्णन हुआ है -


जो करनी समुझईं प्रभु मोरी। 
नहिं निस्तार कल्प शत कोरी।।


चारों युगों (सतयुग , त्रेता , द्वापर एवम कलयुग) की आयु 

Age of the four yugas (Satyug, Treta, Dwapara and Kaliyuga)




Kalpo Ki Avdhi


कल्पों की अवधि :


यहाँ पर कल्पों की अवधि की व्याख्या कर देनी आवश्यक मालूम होती है। 
सतयुग की आयु - 17,28 ,000 वर्ष 
त्रेतायुग की आयु  - 12 ,96 ,000 
द्वापरयुग की आयु - 8 ,64 ,000 
कलयुग की आयु - 4 ,32 ,000 

इन चारों युगों की आयु - 43 ,20 ,000 बनती है।  इन चारों युगों को एक चौकड़ी कहा जाता है।  इसी प्रकार जब एक हजार चौकड़ी युगों की व्यतीत हो जाती हैं , तब एक कल्प होता है।  भरत जी कह रहे हैं यदि भगवान मेरी करनी को देखेंगे तो सौ करोड़ कल्प तक भी मेरा उद्धार नहीं हो सकता। 

फिर सोचते हैं कि मेरे दिल में यह भरोसा बढ़ रहा है कि भगवान के दर्शन होने वाले हैं क्योंकि शकुन भी अच्छे हो रहे हैं।  परन्तु यदि अवधि बीतने पर भी दर्शन न हुये और मेरे प्राण फिर भी शरीर से न निकले तो मेरे समान संसार में दूसरा अधम कौन होगा।  

हनुमान जी का भरत जी से मिलन

Hanuman Ji Meets Bharat Ji


इस प्रकार गहरी सोच विचारो में भरत जी के अन्दर अनेक उतार - चढाव आ रहे थे अर्थात अपने प्यारे इष्टदेव श्री भगवान के वियोग रूपी सागर की लहरों में भरत जी का मन डूबा ही जा रहा था कि इतने में ब्राहमण का रूप धारण किये हुये हनुमान जी ऐसे आ गये जैसे डूबते हुये के समीप नाव आ जाये।हनुमान जी ने भरत जी को देखा कि कुशा के आसन पर बैठे हैं , सिर पर जटाओं का मुकुट है , शरीर अति दुर्बल हो गया है , जिह्वा तथा हृदय से राम राम  का शब्द उच्चारण हो रहा है और कमल समान नेत्रों से जल बरसा रहे हैं। 

भरत जी को देखते ही हनुमान जी बहुत प्रसन्न हुए ,शरीर पुलकायमान हो गया , नेत्रों से आनन्द और प्रेम के आँसू  बहने लगे , मन में बहुत प्रकार से सुख मान कर भरत जी के कानों को अमृत के समान वाणी बोले - हे भरत जी ! आप जिनके वियोग में दिन रात सोच कर रहे हैं तथा हृदय में जिनके गुणों की रट लगाये हुए हैं , वे रघुवंश कुल के तिलक , भक्तों को सुख देने वाले तथा देवता और मुनिजनों के रक्षक, रण में शत्रु को जीत कर सीता और लक्ष्मण जी के सहित प्रभु आ रहे हैं। 

हनुमान जी के मिलते ही भरत जी के सब दुखों का निवारण 

The end of all the sorrows of Bharat ji as soon as Hanuman ji is found.


ऐसे सुखदायी और आनन्दमयी हनुमान जी के वचनों को सुनते ही भरत जी के सब दुःख दूर हो गये।  मानो एक प्यासे मनुष्य को प्यास बुझाने के लिये किसी ने अमृत पिला  दिया हो। भरत जी बोले , ऐ प्यारे ! तुम कौन हो और कहाँ से आये हो जो मुझे अति प्यारे वचन सुना रहे हो ? 

हनुमान जी बोले - ऐ कृपानिधान भरत जी ! मैं पवन का पुत्र हूँ , मेरा नाम हनुमान है और दीनबन्धु श्रीराम जी का एक छोटा सा किंकर कहिये दास हूँ।  ऐसा सुनते ही भरत जी शीघ्रता से उठे और आदर सहित हनुमान जी के गले से लिपट गये।  हनुमान जी से मिलते हुए भरत जी के हृदय का प्रेम उछल रहा है।  शरीर पुलकायमान हो गया और नेत्रों से जल बहने लगा। 

भरत जी बोले ऐ हनुमान जी ! आपके दर्शन पाकर मेरे सब दुःख दूर हो गये क्योंकि आज मुझको अपने भगवान के प्यारे दास मिल गये।  बार  बार कुशल पूछते हैं और कहते हैं - ऐ हनुमान जी ! जो सन्देश आपने मुझको आकर सुनाया , इसके बदले आपको क्या दूँ ?संसार में ऐसी कोई भी वस्तु दिखाई नहीं देती जो आपकी भेंट कर सकूँ।  ऐ प्यारे मैं आपका ऋणी हूँ , उऋण कभी नहीं हो सकता। 

अब ऐसा करो कि मुझे मेरे प्यारे भगवान के चरित्र सुनाओ। तब हनुमान जी ने भरत जी के चरणों में मस्तक निवाकर श्री रघुनाथ जी के गुणों की सब कथा कही। तब भरत जी पूछने लगे ऐ - हनुमान जी ! यह भी तो कहो कि क्या मेरे दयालु स्वामी मुझको सेवक के समान जान कर याद करते हैं ?

हनुमान जी द्वारा भरत जी को प्रभु श्री राम जी के गुणों का वर्णन करना 

Describing the qualities of Lord Shri Ram ji to Bharat ji by Hanuman ji


भरत जी ने जब यह कहा कि रघुवंश भूषण भगवान श्री राम जी मुझे अपना दास जानकर कभी याद करते हैं ? भरत जी ऐसे बड़ी अधीनता के वचन सुनकर हनुमान जी पुलकित शरीर हो उनके चरणों पर गिर पड़े। मन में विचारने लगे कि जड़ अथवा चैतन्य चराचर के स्वामी श्री राम जी ने जिन भरत जी के गुण  और भक्ति की महिमा अनेक बार वर्णन की है , सो भरत जी ऐसे नम्र स्वभाव , परम् पवित्र और शुभ गुणों के सागर क्यों न हों।  

तब फिर हनुमान जी बोले , ऐ प्यारे भरत जी ! तुम श्री रामचन्द्र जी को प्राणों से भी अधिक प्यारे हो , यह मेरा वचन सत्य कर मानो।  ऐसा कहकर हनुमान जी भरत जी से बार - बार मिलते हैं। हृदय में प्रेम नहीं समाता। 

हनुमान जी का वापस प्रभु श्री राम जी के पास आना 

Hanuman ji's return to Lord Shri Ram ji


तब फिर भरत जी के चरणों में सिर निवाकर हनुमान जी तुरन्त श्री राम जी के पास पहुँच गये और सब कुशल समाचार जा सुनाया। तब प्रसन्न होकर प्रभु श्री राम जी पुष्पक विमान पर चढ़कर अयोध्या पुरी को चले। 

इधर भरत जी ने अयोध्या पुरी में जाकर अपनी माताओं तथा पुरवासियों को श्री भगवान के आने का शुभ सन्देश जा सुनाया। सुनते ही सब नगरवासी दौड़े और मारे ख़ुशी के नाचते उछलते हुये भरत जी के संग वहाँ पहुँचे जहाँ श्री राम जी का विमान उतरना था। 

प्रभु श्री राम जी का पुष्पक विमान से अयोध्यापुरी में आना 

Coming of Lord Shri Ram to Ayodhyapuri by Pushpak Viman


कृपासिन्धु भगवान ने सब लोगों को आते देखा। तब उनकी प्रेरणा से निश्चित स्थान पर पुष्पक विमान उतरा। 

प्रभु श्री राम जी के श्री दर्शन एवं स्वागत करने के लिये सब अयोध्यावासियों का आना 

Coming of all Ayodhya residents to welcome and visit Lord Shri Ram ji


भरत जी के संग श्री भगवान् के स्वागत और दर्शन के लिये सब अयोध्यावासी आये। श्री राम जी के वियोग से सब के शरीर दुबले हो रहे थे। अयोध्यावासियों में श्री वामदेव जी तथा मुनियों के नायक गुरु वशिष्ठ जी भी थे।  

श्री भगवान ने दूर से देखा कि गुरु वशिष्ठ जी आ रहे हैं। तब शीघ्रता से अपना धनुषबाण पीछे हाथ करके धरती पर धर दिया और लक्ष्मण जी के सहित दौड़ कर गुरु के चरणों पर जा गिरे।  दर्शन पाते ही शरीर पुलकायमान हो गया। गुरु वशिष्ठ जी ने दोनों भाइयों को उठाकर अपने गले लगाया और कुशल पूछी।  तब श्री राम जी ने हाथ जोड़कर विनय की - गुरुमहाराज ! आपकी दया से हमारी कुशल है। 
फिर भरत जी ने जो प्रेम में विह्वल थे , अपने प्रभु के चरण - कमलों पर अपना सिर धर दिया , जिन चरणों को देवता , मुनि  तथा शिवजी और ब्रह्मा जी भी नमस्कार करते हैं। भरत जी पृथ्वी पर पड़े हैं , उठाये से भी नहीं उठते। तब कृपासिन्धु श्री भगवान ने अपने भुजबल से जोर के साथ उठाकर हृदय से लगा लिया। साँवले शरीर के रोमांच खड़े हो गये और नवीन कमल के समान नेत्रों से प्रेम के जल की धारा चल पड़ी। 

श्री भगवान राम तथा भरत जी दोनों के कमल समान नेत्रों से जल बह रहा है तथा दोनों के सुन्दर शरीर पुलकायमान हो रहे हैं। इस प्रकार त्रिभुवन के धनी प्रभु श्री राम जी बड़े प्रेम सहित हृदय से लगाकर भरत जी को मिले।  श्री राम जी भरत जी मिलते हुये ऐसे शोभायमान हुये , शिवजी कहते हैं - ऐ पार्वती ! वह शोभा मुझसे वर्णी नहीं जाती , मानो प्रेम और श्रंगार शरीर धारण कर मिलते हुए शोभा को प्राप्त हो रहे हैं। 

प्रभु श्री राम चन्द्र जी द्वारा भरत जी का कुशलक्षेम पूछना 

Asking Bharat ji's well being by lord shri ram chandra ji


कृपानिधान श्री राम चन्द्र जी महाराज भरत जी से कुशल पूछने लगे , परन्तु भरत जी के मुख से शीघ्र वचन नहीं निकलता अर्थात आनन्द में मग्न होने के कारण भरत जी शीघ्र उत्तर नहीं दे सके।  स्वामी और सेवक के मिलाप में उस समय जो सुख उपज रहा है , शिवजी कहते हैं , ऐ पार्वती ! वह सुख मन और वाणी से ऊपर है, जो पाता है वही जानता है। 

हे अयोध्या नाथ ! अब कुशल है जो आप ने मुझे अपना दास जानकर दर्शन दिया और विरह रूपी सागर में डूबते हुए को आपने हाथ पकड़ कर निकाल लिया। 

भरत जी और शत्रुघ्न का भ्राता लक्ष्मण जी से मिलना 

Bharat ji and Shatrughna meet brother Lakshman ji


तत्पश्चात भरत जी और शत्रुघ्न भ्राता लक्ष्मण जी से मिले। मिलते समय सबका प्रेम हृदय में नहीं समाता।  फिर भरत तथा शत्रुघ्न जी ने सीता जी के चरणों में मस्तक निवाकर परम सुख पाया। प्रभु के दर्शन करके नगरवासी अति प्रसन्न हुये।  वियोग से उत्पन्न हुई विपत्ति सब मिट गयी। 

प्रभु श्री राम चन्द्र जी ने एक कौतुक रचा 

Prabhu Shri Ram Chandra ji composed a prodigy


श्री भगवान  अयोध्या के सब नर - नारी प्रेम में व्याकुल हो रहे हैं और अब आगे आकर उनसे मिलना चाहते हैं , तब उन्होंने एक कौतुक किया। 

अपने अनन्त रूप उस समय प्रकट किये।  इस प्रकार दयालु भगवान यथा योग्य सब से मिले और अपनी कृपा दृष्टि से सब लोगों को निहार कर सम्पूर्ण नर - नारियों का चित्त प्रसन्न कर दिया।  शिवजी कहते हैं - हे पार्वती ! एक क्षण में श्री भगवान सबसे मिल लिये , परन्तु  इस भेद को किसी ने भी नहीं जाना। 

 भगवान् के साथ अयोध्या में आये हुए शुभ शील विभीषण , सुग्रीव , नल - नील , जाम्बवन्त , अंगद तथा हनुमान आदि सब वानर परम् मनोहर शरीर  किये हुए सब पुरवासियों की प्रसन्नता अवलोकन करते हुये मन में प्रसन्न हो रहे हैं तथा भरत जी का स्नेह ,शील , व्रत , नेम ,आदर सहित अत्यन्त  प्रेम से वर्णन करते हैं और नगरवासियों की रीति तथा उनकी प्रभु के चरणों में अधिक प्रीति देखकर सब सराहना करते हैं।  

प्रभु श्री राम जी के साथ आये सब सखाओं का मुनि वशिष्ठ जी के श्री चरण कमलों में दण्डवत प्रणाम करना 

To pay obeisance to all the friends who came with Lord Shri Ram ji at the lotus feet of Muni Vashishth ji.


नीति - निधान श्री रघुनाथ जी ने फिर अपने सब सखाओं को बुलाकर इस प्रकार सिखाया कि तुम मुनि वशिष्ठ जी के चरणों में दण्डवत करो और कहा कि गुरु वशिष्ठ जी हमारी कुल के पूज्य हैं , हमने रावण के साथ युद्ध भूमि में जो राक्षस मारे हैं , वे सब इन्हीं की कृपा से मारे हैं।  

अब गुरु वशिष्ठ जी के आगे बेनती करते हैं - हे मुनिराज ! ये सब मेरे सखा हैं जो युद्ध रूपी  तारने के लिए बेड़े बन गये।  इन्होनें मेरे निमित्त अपने जन्म हर दिये , इसलिये ये मुझे भरत जी से भी अधिक प्यारे हैं।  प्रभु के ऐसे वचन सुनकर सब वानर वीर मग्न हो गये।  पल - पल  नये सुख उपजते हैं। 
भरत मिलाप के प्रसंग में एक विशेष बात जो वर्णन हुई है , उसको खोलकर लिख देना आवश्यक है।  यह भेद की बात परमार्थी जीवों लिये बहुत कुछ सोच - विचार का अधिकार रखती है। 

जब श्री राम जी का पुष्पक विमान अयोध्यापुरी में उतरा तो श्री भगवान ने देखा अयोध्यावासियों के साथ - साथ गुरु वशिष्ठ जी भी आ रहे हैं।  तब दोनों भाइयो ने धनुष बाणों को पीछे हाथ करके धरती पर रख दिया और दौड़ कर गुरु के चरणों में जा गिरे , यह प्रसंग ऊपर आ चुका है।  

विचारने योग्य बात यह है कि धनुष बाण को पीछे हाथ करके धरती पर क्यों रख दिया ? इसका उत्तर यह है कि यह भक्ति की रीति है। भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और मर्यादा यह कहती है कि जब जीव गुरु के सम्मुख जावे तो कोई चीज हाथ में ऐसी नहीं होनी चाहिये जिससे यह सिद्ध होता हो कि वह बल रखता है। यहाँ तक कि एक छड़ी भी हाथ में नहीं  होनी चाहिये अर्थात गुरु के सम्मुख हर प्रकार का बल हारकर जाना चाहिये।  जैसे गुरुवाणी में भी आया है :-

बलिहारी गुरु आपणे दिउहाड़ी सद वार। 

अर्थात मैं अपने गुरु के ऊपर अपना सब बल हार दूँ तथा एक एक दिन में सौ सौ बार बल हारकर जाऊँ , क्योंकि ऐसा भक्ति कहती है।  गुरु निमाणियों  के मान हैं , नितानियों के ताण हैं , निओटियों की ओट और निआसरों के आसरे हैं। सन्त उपदेश करते हैं कि - ऐ जीव ! जब तू सांसारिक माया का बल गुरु के चरणों में भेंट  कर देगा तो गुरु से तुझे भक्ति का बल मिलेगा , जिसको पाकर तू भक्ति मार्ग में बलवान होकर चल सकेगा।  


भगवान् श्री राम जी का जैसे ही अयोध्या आगमन हुआ तो सब ओर आनन्द ही आनन्द छा गया।  प्रजाजनों ने घर घर दीप जलाये , मिठाईयां खा रहे हैं , बाँट रहे हैं, चारों ओर ख़ुशी ही ख़ुशी छा रही है। प्रजा अपने भगवान से मिलकर हर प्रकार से खुश हो गयी और राम राज्य की स्थापना हो गयी। यही सच्ची दिवाली है। 

ये भी पढ़ें :

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ