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हनुमान जी भरी सभा में रत्न माला तोड़ रहे हैं क्यों? हनुमान जी ने अपने नाखूनों से अपनी छाती को चीर डाला Hanuman Ji Ka Ratna Mala Todna.

Hanuman Ji

हनुमान जी रत्न माल तोड़ रहे हैं क्यों ? पढ़िये :

                   । । दोहा। । 

वह शोभा समाज सुख , कहत न बनै खगेश। 

बरनै शारद शेष श्रुति , सो रास जान महेश।

काकभुशुण्डि जी बोले - हे गरुड़ जी ! जब भगवान श्री राम चन्द्र  जी महाराज सिंहासन पर विराजमान हुये , उस समय की शोभा और उस समाज का सुख वर्णन नहीं किया जा सकता।  यद्यपि शेष , सरस्वती और वेदों ने अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उस शोभा के सुख को वर्णन किया है , परन्तु उस शोभा और सुख का वास्तव में जो रस है , उस रस को शिवजी भली भाँति जानते हैं क्योंकि उन्होंने उस रस का पान किया है।  

भाव यह कि भगवान की लीला और महिमा के सुख का उसके परम् भक्त ही अनुभव करते हैं, दूसरा कोई नहीं जान सकता। भगवान श्री राम जी सीता जी सहित भरी सभा में राज्य गद्दी पर विराजमान हैं , उस समय की यह कथा है -

भक्तों और भगवान् के अन्तर्गत प्रेम - भक्ति और क़ुरबानी का सम्बन्ध
Relationship of love - devotion and sacrifice between devotees and God

भक्तों और भगवान् के अन्तर्गत जो प्रेम - भक्ति और क़ुरबानी का सम्बन्ध होता है , उस को संसार में बहुत कम लोग जानते हैं।  जैसे संसारी लोगों का अपने सम्बन्धियों के साथ लेन - देन का व्यवहार होता है , ऐसे ही भक्तों का भी अपने भगवान् के साथ लेन - देन का सिलसिला चलता है लेकिन दोनों के परिणाम में धरती और आकाश का अन्तर है। 

भगवान् तथा भक्तों के लेन - देन में प्रधानता प्रेम - भक्ति की होती है
In the transaction of God and the devotees, the primacy is of love and devotion.

संसारियों के लेन - देन में मोह प्रधान होता है , जिसके कारण जीव संसार में बँधता है और भगवान् तथा भक्तों के लेन - देन में प्रधानता प्रेम - भक्ति की होती है , जिसके कारण जीव के मोह के बन्धन टूटते हैं और सच्चा मोक्ष मिलता है। 

परम् भक्त विभीषण जी द्वारा रत्नों की माला को राज्यतिलक के अवसर पर भेंट करने के लिये माता जानकी जी के गले में डालना।   
Param devotee Vibhishan ji to put a garland of gems around the neck of mother Janaki ji to be presented on the occasion of the Raj Tilak.

अपने प्रभु को सुन्दर राज्यसिंहासन पर विराजमान देखकर परम् भक्त विभीषण जी जो उसी सभा में बैठे थे , बड़ी प्रसन्नता से उठे और रत्नों की माला हाथ में उठा ली। यह वह माला थी जो समुद्र ने रावण को दी थी और रावण के मरने के बाद विभीषण के हाथ आई और वे उस माला को राज्यतिलक के अवसर पर भेंट करने के लिये साथ लाये हुए थे। सो वही सुखदायक रत्नों की माला विभीषण जी ने माता जानकी जी के गले में डाल दी।  

रत्न माला को देखकर समूह राज - समाज का मन मोहित होना । 
Seeing the garland of gems, the mind of the group and society becomes fascinated.

उस सभा में देश - देशान्तर से आये हुये अनेक राजा भी थे।  उस माला की ऐसी विशाल ज्योति थी कि कोई राजा सन्मुख दृष्टि करके देख नहीं सकता था। समूह राज - समाज अधिक शोभायमान था।  इस माला को देखकर सबका मन मोहित हो गया। 

माता जानकी जी द्वारा रत्न माला को हनुमान जी के गले में डालना 
Mata Janaki ji putting Ratna Mala around Hanuman ji's neck

उस समय महारानी जानकी जी रघुनाथ जी की ओर देखकर मुस्कराई , जिसका भाव यह था कि वह अपने भगवान से पूछ रही हैं कि यह माला किसको दूँ। तब रघुनाथ जी उनके मन की जान कर बोले प्रिया ! जिसे देने की इच्छा हो दे दीजिये।  यह वचन सुनकर जानकी जी ने उस माला को गले से उतारा और मन में विचार कर पवन सुत हुनमान जी की ओर देखा। 

हनुमान जी भी जान गये कि माता सीता जी की उन पर प्रसन्नता पड़ रही है। तब उन्होंने चित्त में अति प्रसन्न होकर दण्डवत किया।  आज्ञा पाकर उठे तो वह रत्नों की माला माता जानकी जी ने महावीर जी के गले में डाल दी। 

रत्न माला को पाकर हनुमान जी का अति प्रसन्न होना 
Hanuman ji was very happy after receiving the Ratna Mala.

रत्नमाल पाकर हनुमान जी अति प्रसन्न हुये और मन में विचारने लगे कि इस माला में कोई बड़ा भारी गुण है।  परम् आनन्द और प्रेमरस में सराबोर होकर माला के एक एक मनके को बड़े ध्यान से देखने लगे परन्तु प्रकाश के सिवाय उसमें कुछ था नहीं।  

हनुमान जी द्वारा रत्नमाला को तोडना 
Breaking of Ratnamala by Hanuman ji

वे जिस वस्तु को देखना चाहते थे , वह उसमें दिखाई नहीं दी। फिर सोचने लगे मेरी मनभावनी वस्तु इन मणियों के बाहर तो नजर नहीं आती जिसमें मेरा मन लगे।  सम्भव है कि इस के भीतर कुछ सार हो। 

ऐसा विचार कर महाबीर  जी ने एक मोती तोड़ डाला और उसके बीच में देखने लगे।  जब उसके अन्दर प्रकाश के सिवाय कुछ भी नजर नहीं आया , तब फिर दूसरा मोती तोड़ डाला और उसको भी बेकार समझकर फेंक दिया।  

देखने वाले आश्चर्य को प्राप्त हो रहे थे कि हनुमान जी यह क्या कर रहे हैं ?  परन्तु हनुमान जी इस प्रकार एक एक करके सब मोती तोड़ने लगे।  देखने वाले लोग बड़े दुःखी हो रहे थे और मन ही मन में कह रहे थे कि जो कोई अधिकारी न हो , उसको ऐसी वस्तु देना उचित नहीं है।  जो कोई देगा तो दशा यही होगी जो हनुमान जी के हाथों रत्नमाला की हो रही है।  

यदि यह मणियों की माला किसी राजा के हाथ में आती तो इसका मूल्य पड़ता।  भला वानर जीव क्या जाने कि रत्नों और मणियों की क्या कीमत होती है। उस सभा में बैठे हुये जितने राजा लोग थे , उनमें से एक बोल उठा - महावीर जी ! यह आप क्या कर रहे हैं ? इतने बुद्धिमान होकर सुन्दर रत्न माला को क्यों तोड़ रहे हो ?

उस राजा का यह वचन सुनते ही हनुमान जी बोले - मैं इस माला में अपने प्रभु के सुखदायक नाम को देखता हूँ , परन्तु वह राम नाम इसमें मुझे दृष्टि नहीं आता , इस कारण सब मोतियों को तोड़ता और फेंकता जाता हूँ।  फिर एक और राजा कहने लगा कि हमने आज तक सब वस्तुओं में राम का नाम तो कहीं नहीं सुना।  

तब महावीर जी बोले - जिस वस्तु में नाम नहीं है , वह वस्तु तो किसी भी काम की नहीं , उसे तो फेंक देना ही अच्छा है। तब वह राजा बोला - हे बलवान महावीर ! आप के कथन अनुसार यदि सब वस्तुओं में राम नाम होता है तो फिर आपके शरीर में भी राम का नाम होगा।  

हनुमान जी ने अपने नाखूनों से अपनी छाती को चीर डाला 
Hanuman ji ripped off his chest with his fingernail

यह सुनते ही हनुमान जी बोले - मुझे ऐसा विश्वास है कि मेरे शरीर में श्री राम जी का नाम अवश्य है।  इतना कहते ही रह न सके , अपने नाखूनों से अपनी छाती चीर डाली।  तब क्या था रोम रोम में राम का नाम उच्चारण हो रहा था। जितने स्थान में एक रोम होता है , इतना स्थान भी भगवान नाम से खाली नहीं था।  

यह कौतुक देख कर सब लोग मन में चकित हो गये श्री रघुनाथ जी की कृपा दृष्टि हनुमान जी पर पड़ी। हनुमान जी का शरीर वज्र के समान हो गया। तब नेत्रों में जल भरकर पुलकित हो भगवान ने तुरन्त उठकर हनुमान जी को अपने हृदय से लगाया , आकाश से फूलों की वर्षा और जय जयकार के शब्द हुये। 

धन्य हैं ऐसे भक्त और धन्य है उनकी करनी , जिन के पवित्र इतिहास पढ़ सुनकर मनुष्य में जागृति आती है और मन भजन में लगता है।  यह निस्सन्देह यथार्थ बात है कि नाम भजन के सिवाय मनुष्य किसी काम का नहीं। नाम जपने वाला मनुष्य यदि सांसारिक दृष्टि में कंगाल भी है तो उस धनवान से लाख गुना अच्छा है जो स्वर्ण के महलों में रहता हुआ भगवान नाम से खाली है।  तथा नाम जपने वाला जीव यदि शरीर करके कुष्टी भी है तो भी उस स्वर्ण के समान चमकीली देह रखने वाले से कई गुना बढ़कर है, जो नाम से हीन है। संतों की वाणी कहती है :-

                       ।। दोहा। 

नाम जपत कुष्टी भला , चुइ - चुइ परै चाम। 

कंचन देह केहि काम की , जा मुख नाहीं नाम।। 

इसलिये हे भाई ! मनुष्य शरीर को पाकर "नाम जपो और वंड छको। " यह श्री बाबा नानकदेव जी महाराज का उपदेश है कि नाम का स्मरण करो और माया को परमार्थ में खर्च करो. यही दो बातें संतों का सिद्धान्त हैं। इन्हीं दो बातों पर अमल कर लिया , उसको फिर और कुछ करने की आवश्यकता नहीं रहती। 

हनुमान जी का रत्न माल तोड़ने का प्रसंग समाप्त हुआ , राम राज्य हो गया और सब प्रजा सुखी रहने लगी। 

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