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किस श्राप के कारण भगवान् श्री राम जी ने राजा दशरथ के यहाँ अवतार धारण किया ? Due to which curse Lord Shri Ram Ji incarnated at the place of King Dasharatha?

shri ram ji


बुद्ध पुरुषों के जीवन प्रसंग: 

क्या आप जानते हैं ? किस श्राप के कारण भगवान् श्री राम जी ने राजा दशरथ के यहाँ अवतार धारण किया ? Due to which curse Lord Shri Ram incarnated at the place of King Dasharatha? 

यदि नहीं तो इस लेख को अंत तक पढ़िये।  

संसार बंधन से कैसे मुक्ति प्राप्त  हो ?

How to get rid of worldly bondage?

प्राचीन वशिष्ठ महारामायण का प्रसंग चल रहा है - राजा अरिष्टनेमि ने राज - पाट का त्याग कर  तप साधना की और संसार के सब भोगों की आसक्ति मन से त्याग दी। देवराज इन्द्र  के सन्देश के अनुसार जब राजऋषि वाल्मीकि  जी के आश्रम में आत्म - बोध ग्रहण करने के लिए पहुँचे तो वाल्मीकि जी ने कहा - हे राजन ! कुशल तो हैं ? राजा बोले , भगवन ! आप परमतत्वज्ञ और वेदांत के जानने वालों में श्रेष्ठ हैं , मैं आपके दर्शन करके कृतार्थ हुआ और अब मुझको कुशलता प्राप्त हुई है। मैं आपसे पूछता हूँ , कृपा करके उत्तर दीजिये कि संसार बंधन से कैसे मुक्ति हो ?

इतना सुनकर वाल्मीकि जी बोले - हे राजन ! मैं वशिष्ठ महारामायण जो कि आत्म - ज्ञान का खजाना है , तुमसे कहता हूँ।  उसको सुनकर उसका तात्पर्य हृदय में धारण करने का प्रयत्न करना।  जब तात्पर्य हृदय में मनन करोगे और उसके अनुसार आचरण तब जीवन मुक्त होकर विचरण करोगे।  हे राजन ! यह आत्म - ज्ञान की कथा महर्षि वशिष्ठ जी और श्री रामचन्द्र जी का संवाद है और इसमें मोक्ष का उपाय कहा गया है।  इसको सुनकर जैसे रामचन्द्र जी अपने आत्म - भाव में स्थित हुए और जीवन्मुक्त होकर जगत में विचरे , वैसे ही तुम भी आत्म - स्थित होकर जीवन्मुक्त हो जाओगे। 

राजा बोले -  भगवन ! 

श्री रामचन्द्र जी कौन थे और कैसे आत्म - स्थित होकर जीवन्मुक्त हुए ?
Who was Shri Ramchandra ji and how did he become self-established and liberated? 

सो कृपा करके कहो। 

तब वाल्मीकि जी बोले - राजन ! सच्चिदानंद सर्वज्ञ विष्णु जी जो सदैव अद्वैतज्ञान से सम्पन्न हैं , शापवश अज्ञान को अंगीकार करके मनुष्य का शरीर धारण किया था और अनेक मानवीय लीलाएं की थीं।  इस पर राजा ने पूछा - भगवन ! 

सच्चिदानंद हरि (भगवान् विष्णु ) को शाप किस कारण हुआ और किसने दिया ? 
What caused the curse of Satchidananda Hari (Lord Vishnu)  and who gave it?

सो कृपा करके कहो।

तब वाल्मीकि जी ने राजा अरिष्टनेमि जी को आत्म - बोध कराने हेतु कथा सुनाना आरम्भ किया।  वाल्मीकि जी बोले हे राजन ! वशिष्ठ महारामायण परम - ज्ञान का वह सागर है जिसे श्रद्धापूर्वक ग्रहण करने पर सहज ही आत्म - बोध हो जाता है।  उसी पावन कथा के द्वारा मैं तुम्हें वह आत्म - ज्ञान सुनाता हूँ। मन को एकाग्र करके श्रवण करो। 

वाल्मीकि जी बोले , हे राजन ! एक समय ब्रह्मऋषि सनत्कुमार , जो पूर्णतः निष्काम हैं  और अपने तपोबल से सदैव बाल अवस्था में रहते हैं , ब्रह्मपुरी में बैठे थे ,  तब त्रिलोकपति विष्णु भगवान् भी बैकुंठ से उतरकर ब्रह्मपुरी में आये।  उन्हें देख ब्रह्मा जी सहित सारी सभा उठकर खड़ी हुई और सबने श्री भगवान् का पूजन किया , पर सनत्कुमार ने उनके सम्मान में पूजन नहीं किया।  यह देखकर विष्णु भगवान् बोले कि हे सनत्कुमार ! तुमको अपनी निष्कामता का अभिमान हो गया है , सो एक समय तुम भी कामनायुक्त हो जाओगे।  इस वचन के अनुसार ब्रह्मऋषि सनत्कुमार को शिवसुत स्वामि -कार्तिकेय के नाम से जन्म धारण करना पड़ा।  इस पर पलट कर सनत्कुमार बोले , हे विष्णो ! तुम्हें भी सर्वज्ञता का मान है अतः तुम भी एक समय सर्वज्ञता से निवृत होकर अज्ञता को प्राप्त होंगे। 

हे राजन ! सनत्कुमार के इस शापवश विष्णु भगवान् ने मनुष्य का शरीर धारण किया और राजा दशरथ के घर में श्री राम रूप में प्रकट हुए।  उस मानव शरीर में जो वृतांत हुआ वह अज्ञलीला ध्यान देकर सुनो। 

वशिष्ठ महारामायण का विषय , प्रयोजन व सम्बन्ध -

मोक्ष का सरल उपाय क्या  है ?
What is the simple way of salvation?

भगवान् वाल्मीकि जी बोले - अनुभवात्मक मेरी आत्मा जो त्रिलोकी अर्थात स्वर्ग , मृत्यु और पाताल का प्रकाशकर्ता है और भीतर बाहर से परिपूर्ण है उस सर्वात्मा को नमस्कार है।  हे राजन ! यह महाशास्त्र जो श्रीराम वशिष्ठ संवाद रूप महारामायण मैं आरम्भ कर रहा हूँ।  इसका विषय , प्रयोजन और सम्बन्ध क्या है और इसके सुनने व ग्रहण करने के अधिकारी कौन हैं , सो सुनो। 

यह वशिष्ठ महारामायण ब्रह्मज्ञान का एक महाशास्त्र है।  यह महाशास्त्र सत-चित्त-आनन्द रूप अचिन्त्य चिन्मात्र आत्मा का ज्ञान कराता है।  यह तो विषय है।  परमानन्द आत्मा की प्राप्ति और अनात्म देहादि का अभिमान तथा इससे उत्पन्न दुःख की निवृत्ति इसका प्रयोजन है। ब्रह्म विद्या और मोक्ष के उपाय से आत्म - पद प्रतिपादन करना सम्बन्ध है। जिस पुरुष को यह निश्चय है कि मैं अद्वैत ब्रह्म होते हुए भी अनात्म देह से बँधा हुआ हूँ और जो किसी प्रकार भी न अति ज्ञानवान है , न मूर्ख है , ऐसा अज्ञ - आत्मा यहाँ अधिकारी है।  

यह शास्त्र मोक्ष ( परमानन्द की प्राप्ति ) कराने वाला है।  जो पुरुष इसको सुनेगा और विचारेगा और तद्वत साधन करेगा , वह ज्ञानवान होकर फिर जन्म - मृत्यु रूप संसार में न आएगा , यह इसका फल है।  हे राजन ! यह महारामायण शास्त्र अति पावन है।  इसका श्रवण मात्र ही सब पापों का नाशकर्ता है। यह रामकथा है जो मैंने प्रथम अपने शिष्य भारद्वाज को सुनाई थी। 


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  5. राजा दशरथ का रामविरह में अत्यन्त व्याकुल होना। King Dasharatha's grief over the separation of Rama.
  6. विषयों में कुछ भी सुख नहीं है, दुःख बहुत हैं। There is no happiness in desires, there are many sorrows.




 



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