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Naam Ki Sadhna Kaise Karen? करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।

nam ki mahima

करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान। 
रसरी आवत जात है,  सिल पर परत निशान।।

पत्थर पर बहुत पानी एकदम से डाल दिया तो पत्थर केवल भीगेगा,शेष पानी बह जायगा और पत्थर सूख जायगा। किन्तु  वह पानी यदि बूँद-बूँद पत्थर के एक ही जगह पर लगातार गिरता रहेगा तो पत्थर में छेद हो जायेगा। कुछ दिनों  के बाद पत्थर टूट भी जायगा। उसी तरह किसी निश्चित स्थान पर नाम स्मरण की साधना की जायगी तो उसका परिणाम अधिक होता है। 


चक्की में दो पाटे होते हैं, उनमें  से एक स्थिर रहकर यदि दूसरा घूमता रहे तो अनाज पिस जाता है और आटा बाहर आता है, लेकिन यदि दोनों पाटे घूमते रहेंगे तो अनाज नहीं  पिस पायगा और परिश्रम व्यर्थ होगा। आदमी के दो पाटे हैं-मन और शरीर। उनमें से मन स्थायी है ओर शरीर घूमने वाला पाटा है। मन को भगवान्‌ के प्रति स्थिर किया जाय और शरीर से गृहस्थी के काम किये जायँ। 


प्रारब्ध की सीमा या सम्बन्ध शरीर तक होता है। प्रारब्ध रूपी खूँटा शरीर रूपी पाटे में  बैठकर उसे घुमाता है। मन रूपी पाटा स्थिर रहता है। देह को प्रारब्ध पर छोड दिया जाय और मन को नाम स्मरण में विलीन किया जाय। यही नाम साधना है । यह साधना कोई विशेष व्यक्ति ही कर पायेगा ऐसा नहीं, साधना तो कोई भी कर पायेगा। 


गरीब को गरीबी  का दुःख होता है, इसलिये साधना नहीं कर पाता, धनवान को अपने धन का अहंकार और लोभ होता है, इसलिये साधना करने को समय नहीं, विद्वान्‌ को विद्वत्ता का घमण्ड होता है तो  साधना कैसे की जाय-इसे वह समझता नहीं, इसलिये साधना नहीं  हो पाती। शंकित मन से कितनी भी साधना की, कितना भी नाम स्मरण किया तो भी सन्तोष नहीं होगा। 


नीति धर्म का आचरण, शास्त्र शुद्ध व्यवहार, शुद्ध अन्त करण और भगवान्‌ का स्मरण किया गया तो साधक अंत तक पहुँच जायगा और अंत तक पहुँचेगा तो लाभ होगा, अन्यथा नहीं । 


गृहस्थी चलाते समय बुरे विचार मन में आते ही हैं, उसी तरह परमार्थ-साधना करते समय यदि बुरे विचार मन में आते हों तो नाम स्मरण करो, ऐसा करने पर बुरे विचार बढेंगे नहीं । दृढता से नाम स्मरण करते रहो जहाँ कर्तव्य-जागृति है आर भगवान् ‌की स्मृति है, यहाँ समाधान की प्राप्ति होगी ही। भगवन्। मै तो तुम्हारा ही हूँ-ऐसा निरन्तर कहने से भगवान् प्रकट होते रहेंगे और हम पर जो अहंता का बोझ होता है, वह भी कम होता रहेगा। 


नाम के प्रति दृढ़ भाव कैसे उत्पन्न होगा 


नाम के प्रति प्रेम नाम से ही उत्पन्न होगा। ऐसा प्रेम प्राप्त होने के लिये हमें विषयों के प्रति अपना प्रेम कम करना चाहिये। ऐसा दृढ़ भाव चाहिये कि नाम ही तारेगा, नाम ही सब कुछ करेगा। ऐसा भाव रखकर व्यवहार करते रहें। लेकिन सफलता तो भगवान्‌ की ही कृपा से होगी, यह भाव भी बनाये रखे ’


परमात्मा की शरण जाने का मतलब है, परमात्मा अपना है-ऐसा मानना। हम कुछ नहीं करते, वही हमारे लिये सब कुछ करता है, ऐसा दृढ विश्वास रखना। हम अपने पत्नी- बच्चों से प्रेम करते हैं इसलिये कि उन्हें हमने अपना माना है। यानी प्रेम अपनत्व में होता है। तो फिर यदि हम परमात्मा को अपना माने तो क्या उससे सहज ही में  प्रेम उत्पन्न नहीं होगा ? और दूसरी बात यह है कि जब यह हमारा प्राण-प्यारा सखा हमारे लिये सब कुछ कर ही रहा है तो फिर हमें चिन्ता के लिये स्थान भी कहाँ रहा ? हमारा हित हमारी देहबुद्धि नष्ट हो जाने में ही है। 


नाम का अखंड अभ्यास 


परमात्मा के प्रति अपनत्व उत्पन्न होने के लिये नाम का खूब सहवास चाहिये अर्थात् अखण्ड नाम स्मरण करना चाहिये। सिद्धियों, चमत्कारों   के पीछे न पडे। वे हमारे मार्ग के विघ्न हैं। वस्तुत: उन्हें हमारे पीछे लगना चाहिये। कहते हैं  कि किसी-किसी को साँप नहीं काटता, तो इसमें कौन-सी बड़ी बात है? साँप को ही नहीं, सबको भगवद्भाव से देखेंगे तो कोई हमारा शत्रु नहीं होगा। माँ मेरे पास है, इस भावना से बच्चा जैसे निर्भय रहता है, वैसे ही भगवान् हमारे पास हैं, इस भावना से हम निर्भय रहें। 


हमें जिस गाँव को जाना है, उस गाँव को जाने वाली गाडी आयी या नहीं, बस इतना देखें ’, गाडी में बैठने पर कौन मिलता है, इसका कोई बड़ा महत्व नहीं है। मान लो हमें गाडी मे कोई नहीं मिला, तो हम आराम से सोकर या लेटकर अपने गाँव जा सकते हैं। उसी प्रकार हमें अपनी साधना करनी चाहिये। 


सृष्टि के कितने तत्व  हैं, इन सब बातों  के झमेले में पडने की जरूरत ही नहीं। उन तत्वों  का निर्णय कभी होने वाला नहीं है। यह ध्यान में रखना चाहिये कि निःशक होने के सिवाय नाम स्मरण में स्थिरता नहीं आती। जब तक देह बुद्धि है, तब तक नाम स्मरण का महत्व  समझ में नहीं आयेगा। यदि अपना उद्धार हो-ऐसा हम चाहते हैं, तो नाम स्मरण छोड़ना नहीं  चाहिये।


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