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राजा दशरथ का रामविरह में अत्यन्त व्याकुल होना। King Dasharatha's grief over the separation of Rama.

बुद्ध पुरुषों के जीवन प्रसंग के अन्तर्गत ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जी का प्रसंग

राजा दशरथ का रामविरह में अत्यन्त व्याकुल होना

King Dasharatha's grief over the separation of Rama.

बुद्ध पुरुषों के जीवन प्रसंग के अन्तर्गत ब्रह्मर्षि वशिष्ठ जी का प्रसंग चल रहा है। महामुनि महा तपस्वी विश्वामित्र जी ने राजा दशरथ जी के राज-दरबार में आकर जब यज्ञरक्षा हेतु श्री राम जी को साथ भेजने की माँग की तो राजा दशरथ जी अत्यंत व्याकुल हो उठे और बोले कि महामुनि! इस वृद्धावस्था में मेरे घर चार पुत्र हुए हैं। उन चारों में राम जी अभी सोलह वर्ष के हुए हैं और मेरे प्राण हैं। उनके बिना मैं एक क्षण भी नहीं रह सकता। यदि तुम उनको ले जाओगे तो मेरे प्राण निकल जाएँगे। हे मुनीश्वर! केवल मुझे ही उनके साथ इतना स्नेह नहीं किंतु लक्ष्मण, शत्रुघ्न, भरत और माताओं के भी वे प्राण हैं। इनके ले जाने पर तो सब ही मृत हो जाएँगे। हे मुनीश्वर, मेरे चित्त में तो राम ही बसे हैं, उनको मैं आपके साथ कैसे भेज दूँ? मैं तो उनको देखकर जीता हूँ और प्रसन्न होता हूँ। राम जी के वियोग से मेरे प्राण कैसे बचेंगे? हे मुनीश्वर! ऐसी प्रीति मुझे स्त्री, धन और पदार्थों की नहीं जैसी राम जी के साथ है। मैं आपके वचन सुनकर अति शोकवान् हूँ।


यदि आप कहें तो मैं एक अक्षौहिणी सेना, जो अति शूरवीर और शस्त्र- अस्त्र विद्या में सम्पन्न हैं साथ लेकर चलूँ और राक्षसों को मारूँ। परंतु जो खर दूषणादि महाबलवान राक्षस हैं तो उनके साथ युद्ध करने की मेरी भी सामर्थ्य नहीं फिर भला राजकुमार रामजी की क्या सामर्थ्य होगी?


विश्वामित्र जी का दशरथ जी पर क्रोधित होना

Vishwamitra's anger on Dasaratha


वाल्मीकि जी बोले-हे भारद्वाज! जब इस प्रकार दशरथजी ने महा दीन और अधीर होकर कहा तो विश्वामित्र जी रोष में आकर कहने लगे कि हे राजन्! तुम अपने धर्म को स्मरण करो। तुमने अभी कहा था कि तुम्हारा अर्थ सिद्ध करूँगा पर अब तुम अपने धर्म को त्यागते हो। तुम सिंहों के समान होकर मृगों की न्याई भागते हो। इस प्रकार कहते हुए महामुनि विश्वामित्र जी अति क्रोधित हो उठे और बोले-राजन्! पहले रघुवंश कुल में ऐसा कोई नहीं हुआ जिसने अपना वचन पलटा हो। पहले आपने हमें बड़ी आशा दी और अब हमारी आशा तोड़ रहे हो। तुम जो करते हो सो करो, हम चले जाएँगे परन्तु यह तुम्हारे लिये उचित नहीं। तुम सुख से राज्य करते रहो, जैसा होगा हम निपट लेंगे।


वाल्मीकि जी बोले-हे भारद्वाज! इस प्रकार कहते-कहते विश्वामित्र जी अत्यंत क्रोधित हो उठे, उनके नेत्र अंगारों की तरह लाल हो गए। उनके क्रोध से कई योजन तक पृथ्वी काँपने लगी और इन्द्रादिक देवता भी भयभीत हो गए कि यह क्या हुआ है?


वशिष्ठ जी के समझाने पर दशरथ ने राम को विश्वामित्र जी के साथ भेजा

On the persuasion of Vashistha, Dasharatha sent Rama with Vishwamitra.


तब वशिष्ठ जी शांत और गंभीरवाणी में बोले, हे राजन्! इक्ष्वाकु कुल में सब परमार्थी हुए हैं, इसलिए प्राणपन से तुम अपने धर्म को निभाओ। अपने कर्तव्य का स्मरण करके राम जी को इनके साथ भेज दो, यह तुम्हारे पुत्र की रक्षा करेंगे। विश्वामित्र जी महाबलवान् हैं और साक्षात् काल की मूर्ति हैं। यदि तपस्वी कहिये तो भी इन के समान दूसरा नहीं है। शस्त्र और अस्त्र विद्या भी इनके सदृश कोई नहीं जानता। इनको कौन जीत सकता है?


जिसके साथी महा तपस्वी विश्वामित्र जी हों उसको भला किस का भय हो सकता है। आप इन्हें अपना पुत्र नि:संकोच होकर सौंप दो। किसी की सामर्थ्य नहीं कि इनके होते तुम्हारे पुत्र का कोई बाल भी बांका कर सके। जैसे सूर्य के उदय से अन्धकार का अभाव हो जाता है, वैसे ही इनकी दृष्टि से संकट का अभाव हो जाता है। हे राजन्! कदाचित् मूर्तिधारी काल भी आकर खड़ा हो जाय तो भी विश्वामित्र जी के होते तुम्हारे पुत्र को कुछ भय न होगा। तुम शोक मत करो और अपने पुत्र को इनके साथ भेज दो। तुम अपने धर्म में स्थित हो जाओ। श्रेष्ठ पुरुष जो कुछ चेष्टा करते हैं उसके अनुसार ही दूसरे भी करते हैं। यदि तुम अपना पुत्र इन्हें न दोगे तो तुम्हारा सभी पुण्य और धर्म नष्ट हो जाएगा। अतः मोह और शोक को छोड़कर और अपने धर्म का स्मरण करके राम जी को इनके साथ भेज दो तो तुम्हारे सब कार्य सफल होंगे।


इतना कहकर वाल्मीकिजी बोले, हे भारद्वाज! जब इस प्रकार वशिष्ठ जी ने समझाया तो राजा दशरथ उनके वचन सुनकर धैर्यवान् हुए। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर दोनों महामुनियों को प्रणाम किया और उनकी आज्ञा शिरोधार्य ली।


जिन रामजी को विश्वामित्र जी लेने आये हैं, वे अन्तःपुर में अकेले शोकाकुल क्यों बैठे रहते हैं?

Why does Ramji, whom Vishwamitra ji has come to take, sit in mourning alone in the interior?


तब वहाँ पर भृत्यों में जो श्रेष्ठ भृत्य था और राम जी के साथ बाहर अंदर आने-जाने वाला तथा छल से रहित था, उसको बुलाकर राजा दशरथ ने मधुरवाणी में कहा-हे महाबाहो! राम जी को राज-दरबार में ले आओ! यह सुनकर राम जी का वह श्रेष्ठ भृत्य नम्रवाणी में कहने लगा-हे देव! राम जी तो बड़ी चिन्ताग्रस्त अवस्था में बैठे हैं। जिन रामजी को विश्वामित्र जी लेने आये हैं, वे तो रोगी के समान पड़े हैं। उनका शरीर कृश हो गया है और वे अन्तःपुर में अकेले शोकाकुल बैठे रहते हैं। खाना-पीना इत्यादि जो राजकुमारों की सहज चेष्टाएँ हैं, वे भी सब उनको बिसर गई हैं। मैं नहीं जानता कि उनको क्या दुःख हुआ है क्योंकि बहुत पूछने पर भी वे वार्ता नहीं करते।


दूत का यह वचन सुनकर राजा ने कहा कि राम जी के निजी मन्त्री और सब नौकरों को बुलाओ। जब राजा दशरथ की आज्ञा से वे सब वहाँ आ गए तो उन्होंने आदर और युक्तिपूर्वक कोमल और सुन्दर वाणी में उनसे पूछा-हे रामजी के प्यारे! रामजी की क्या दशा है और ऐसी दशा क्यों हुई है, सब क्रम से कहो। मंत्री बोला, हे देव! हम क्या कहें? हमारे स्वामी राम जी बड़ी शोकाकुल अवस्था में हैं। हे राजन! जिस दिन से रघुनाथ जी तीर्थयात्रा करके आये हैं उस दिन से यह अवस्था हुई है। जब हम उन्हें उत्तम भोजन और वस्त्र आभूषण आदि पदार्थ प्रस्तुत करते हैं तो उनको देखकर वे किसी प्रकार भी प्रसन्न नहीं होते। यदि कोई बड़ा मन्त्री आकर कुछ पूछता है तो उससे कहते हैं कि तुम जिसको सम्पदा मान रहे हो वह तो आपदा है और जिसे आपदा मानते हो वह आपदा नहीं है। संसार के नाना प्रकार के पदार्थ जिन्हें तुम रमणीय जानते हो वे सब मिथ्या हैं और दुःख का हेतु हैं। संसार की रमणीयता जिसमें सब डूबे हैं वे मृगतृष्णा के जल के समान हैं, इन को देखकर मूर्ख जीव हिरण की तरह दौड़ते हैं और दुःख पाते हैं।


मन्त्री ने कहा-राजन्! जब हम राम जी से कुछ हँसी की बात करते हैं तो वे हँसते बोलते नहीं, जो बोलते हैं तो यही कि न राज्य सत्य है, न भोग सत्य हैं, न बंधु सत्य है और न मित्र सत्य है। यह सम्पूर्ण जगत् मिथ्या है जिसे अज्ञानी सत्य मान रहे हैं।


मन्त्री ने राजा दशरथ से कहा-प्रभो! रामजी तो हम सबके भी प्रिय और प्राण हैं, अब आप ही बतलाइए हम क्या करें और कैसे राम जी को स्वस्थ व प्रसन्न देखें?

(क्रमशः)


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  5. महाकवि वाल्मीकि जी का अपने प्रिय शिष्य भारद्वाज जी को श्री रामवशिष्ठ प्रसंग कथा सुनाना।To narrate the story of the great poet Valmiki ji to his dear disciple Bharadwaj ji, Shri Ramvasishtha.
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