Mahabharat Me Vidur Kaun The?
महात्मा विदुर भगवान श्री कृष्ण जी Lord Krishna के अनन्य उपासक थे। वह सच्चाई पर अडिग रहने वाले एवं नीति निधान थे। उन्हें यमराज का अवतार माना जाता है। उनके पूर्व जन्म की रोचक घटना इस प्रकार है।
एक ऋषि थे मांडव्य Mandvya जो बदरिका वन में एकान्त प्रशान्त एवं अत्यन्त रमणीक क्षेत्र में कुटि बनाकर तप साधना में लीन रहते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन सादगी एवं तप साधना में लीन रहकर व्यतीत किया।
उन्हें पूरा विश्वास था कि उन्हें मृत्यु के पश्चात् पुण्य लोकों में स्थान मिलेगा परन्तु हुआ इसके बिल्कुल विपरीत। जब उनका अन्तिम समय आया तो यमराज के दूत उन्हें यमराज के समक्ष ले गये।
Pichhle Janm Me Vidur Ji Kaun The?
वह
आश्चर्यचकित थे उन्होंने यमराज को सम्बोधित करते हुए वचन किये! कि मैंने कोई भी
कार्य ऐसा नहीं किया जो मुझे यहां लाया जाय। यमराज ने चित्रगुप्त की ओर इशारा किया
तो उसने उनकी जीवन कुण्डली खंगाली और बताया कि तुम जब छोटे थे तब उडने वाले जो
जलीय जन्तु होते हैं उनके पैरों में धागा बांधकर उन्हें उडाते थे और प्रसन्न होते
थे।
ऋषि मांडव्य ने कहा! बालपन में मनुष्य अनजान होता है और अनजाने में
किये गये कर्म का कोई दोष नहीं लगता लेकिन यदि तुम मुझे दोषी मानते हो तो मैंने
उसका दण्ड भोग लिया है।
यमराज ने ध्यान लगाकर देखा तो ऋषि मांडव्य के जीवन में एक घटना घटित हुई थी। एक समय राजा के महल में चोर घुस आये और उन्होंने राजमहल में कीमती आभूषण आदि चोरी की और वहां से भाग गये जाते समय कुछ आभूषण ऋषि मांडव्य जहां वह समाधि में लीन थे वहां गिर गये।
राजा के कर्मचारी ढूंढते-ढूंढते ऋषि के पास पहुंच गये जहां आभूषण पडे थे। उन्होंने ऋषि को झंझोडते हुए उठाने की कोशिश की लेकिन उनकी समाधि नहीं टूटी तब उन्होंने एक लोहे की बनी हुई हंसली जिसमें कीलें गडी हुई थी ऋषि के गले में डाल दी और कसने लगे।
ऋषि मांडव्य के गले में कील गड गयी और काफी खून रिस गया। उधर असली चोर पकडे गये, तो राजा दौडा-दौडा वहां आया और उनके चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा। ऋषि को भी चेतना आ गयी और उन्होंने राजा को क्षमा कर दिया।
यमराज को इस घटना की जानकारी होने पर भी जब वह नहीं माना तो ऋषि मांडव्य ने यमराज को श्राप दे दिया ऐ यमराज! जा तू दासी पुत्र हो जा। यह सुनकर यमराज घबरा गया और उसने माफी मांगी।
Example Of Devotion To God
ऋषि मांडव्य ने यमराज को गिडगिडाते देखकर कहा यमराज मेरा श्राप तो विरथा नहीं जा सकता तुम्हें दासी पुत्र के रूप में तो जन्म लेना ही पडेगा लेकिन इतना अवश्य है कि तुम दासी पुत्र होते हुए भी सच्चाई और नीति निपुण होंगे, संसार में तुम्हारा सुयश रहेगा और तुम्हें प्रभु की अनन्य भक्ति प्राप्त होगी।
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