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दुलीचन्द के पिता को भेड़िये की योनि क्यों मिली? Why did Dulichand's father get the body of a wolf?


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दुलीचन्द  के पिता को भेड़िये की योनि क्यों मिली?

Dulichand Ke Pita Ko Bhediye Ki Yoni Kyon Milee?

एक बार बाबा नानक देव जी Baba Nanak Dev Ji मरदाना के साथ  भ्रमण करते हुए एक नगर में पहुंचे जहां दुलीचन्द  रहता था। दुलीचन्द को जब पता चला कि नगर में बाबा नानक देव जी का आगमन हुआ है तो उसने सोचा कि  बाबा जी को भी बुलाकर भोजन करवाना चाहिये।  

अतः उसने बाबा जी के श्री चरणों में पहुँच कर अपना घर पवित्र करने के लिए विनय की।  उसकी विनय स्वीकार कर बाबा जी ने दुलीचन्द के घर कृपा की।  उस दिन दुलीचन्द के पिता का श्राद्ध था, तो उसके यहाँ  भण्डारा चल रहा था। 

बाबा जी दुलीचन्द के कल्याण करने के लिए ही उस नगर में आये थे।  दुलीचन्द को सम्बोधित करते हुए बाबा नानक देव जी Baba Nanak Dev Ji ने फ़रमाया दुलीचन्द  क्या यह भण्डारा करने से तुम्हारे पिता को भोजन मिल रहा हैउसने हाँ में उत्तर दिया। 

बाबा नानक देव जी Baba Nanak Dev Ji ने फ़रमाया दुलीचन्द तुम्हारा बाप तीन दिन से भूखा नदी पार उस वन में एक पेड़ के नीचे भेड़िये की योनि में  बैठा है। 

दुलीचन्द यह सुनते ही सकपका गया जैसे उसके पैरों  के नीचे से जमीन खिसक गयी हो। बाबा जी ने फ़रमाया तुम भोजन लेकर वहाँ जाओ और उन्हें भोजन करवाओ। दुलीचन्द कुछ भी निर्णय नहीं ले पा रहा था उसने विनती की कि वह मुझ से कैसे बात करेंगे ? बाबा जी ने फ़रमाया हमारी कृपा से वह तुमसे बात करेंगे।

How did Guru Nanak Dev Ji free Dulichand's father from the birth of a wolf?

दुलीचन्द भोजन लेकर नदी पार उस वन में पेड़ के नीचे पहुंचा तो वास्तव में ही वहाँ  एक भेड़िया बैठा था। महापुरुषों की कृपा से उसकी मानव बुद्धि जागृत हो गयी और उसने दुलीचन्द से बात की।  

दुलीचन्द ने पूछा पिताजी ! आपकी ये हालत कैसे हुई ? उसने बताया बेटा हमारे महल के बराबर में माँस बना था उसकी महक चारों ओर फ़ैल रही थी तो मुझे माँस खाने की इच्छा हुई और मेरे प्राण उसी समय निकल गए इस कारण मुझे ये योनि प्राप्त हुई। 

आज हमारे घर में समय के पूर्ण महापुरुषों ने कृपा की है तुम शीघ्र जाओ उनसे विनय करके नाम लेकर उसकी कमाई करो और उनकी आज्ञानुसार अपना जीवन व्यतीत करो इस प्रकार तुम्हारा कल्याण होगा।

बाबा जी की कृपा से दुलीचन्द के पिता का कल्याण हो गया और दुलीचन्द ने शीघ्र घर पहुँच कर अपने आपको बाबा नानक देव जी Baba Nanak Dev ji के श्री चरणों में समर्पित कर दिया एवम उनकी आज्ञा मौज में चलकर अपने जीवन का कल्याण किया। 


 


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