तपस्वी जाफर सादिक
तपस्वी जाफर सादिक ऊँचे दर्जे के सन्त थे। लोगों की उन पर गहरी श्रद्धा थी। वे थे भी हजरत मुहम्मद साहिब के कुल में से। बडे ही विनयशील और पवित्रात्मा थे।
एक बार ऐसा हुआ कि किसी आदमी के रूपयों की थैली चोरी हो गई। उस ने भ्रमवश फकीर सादिक जी को ही चोर समझ कर उन्हें पकड लिया। सादिक चुप और शान्त रहे। उन्होंने इतना ही पूछा कि ’भाई! तुम्हारी थैली में कितने रूपये थे ?’ उसने बताया-एक हजार।
सादिक जी ने तुरन्त ही अपने पास से उसके रूपये दिलवा दिये। कुछ समय बाद उन रूपयों का असली चोर पकड लिया गया। वह मनुष्य सादिक को उनके रूपये लौटाने के लिये दौड़ा गया। उनसे प्रार्थना की कि ’भगवन ! मुझे क्षमा कीजिये-मैंने आप जैसे त्यागी फकीर पर मिथ्या चोरी का दोष लगाया-ये लीजिये अपने 1000 रूपये।’ सन्त सादिक बोले--सुनो! मैं दी हुई चीज वापस नहीं ले सकता।’ यह है उच्च कोटि के सन्तों की जीवन-चर्या। उस पुरूष पर तो ये शब्द सुनते ही घडों पानी पड़ गया। वह अपनी करनी पर बड़ा पछताया।
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