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धर्म को वाक्यों में बाँधा नहीं जा सकता-उसका गौरव और महत्व अवर्णनीय है। Religion cannot be tied into sentences - its pride and importance are indescribable.


धर्म को वाक्यों में बाँधा नहीं जा सकता-उसका गौरव और महत्व अवर्णनीय है।

"जीने दो और जियो" के आदर्श को अपने जीवन में उतारने वाले एक और सन्त हुए हैं 'अबु उस्मान हायरी।’ उनके हृदय में बचपन से ही यही एक भाव सदा काम किया करता था कि जिस धर्म को ये लोग पुस्तकों और शास्त्रों में ढूँढा करते हैं वह धर्म कोई और ही है। धर्म को वाक्यों में बाँधा नहीं जा सकता-उसका गौरव और महत्व अवर्णनीय है।

अबु उस्मान एक बार अपने ध्यान में लीन कहीं जा रहे थे। उनके श्वास श्वास में अनल हक की गूँज उठ रही थी-अचानक एक मन मौजी लड़का सामने से गुजरा। उस लड़के ने ज्यों ही उन फकीर साहिब को देखा वह पांव से सिर तक एक बार तो कांप गया। अरे! यह क्या हुआ ? आज तो मैं न  जाने किन किन मनसूबों को दिल में सँजाये हुए घर से निकला था-मेरी वेशभूषा भी ऐसी वैसी थी-मुझे क्या पता था कि मार्ग में इतने ऊँचे सन्त मिल जायेंगे।

उस्मान जी की आँख जब उस पर पड़ी वे तुरन्त समझ गये कि यह लड़का है तो संस्कारी किन्तु कुसंगति में पड़ जाने से ऐसा बन गया है। लड़के ने भी मन में सोचा कि अब तो मैं प्रभु के प्यारे की नजरों में आ गया हूँ न जाने ये मेरा क्या करेंगे। वह अन्दर ही अन्दर पानी पानी होने लगा। सिर पर की रेशमी टोपी के नीचे अपने घुँघराले बालों को समेट लिय-बाजा उसके मुँह में था-उसे बगल में छुपा दिया-और आँखे नीची किये यह लड़का निश्चल होकर वहीं खड़ा हो गया।

अबु उस्मान जी ने जब देखा कि यह लड़का अपने में ही स्वयं डूबा जा रहा है-तो वे बड़े प्यार से बोले-’’बेटा, घबड़ाओं नहीं-हम सब उस परमात्मा के एक समान पुत्र हैं। मन को किसी प्रकार से मैला न करो।’’

लड़का उन फ़कीर साहिब के पैरों पर गिर कर लगा क्षमा याचना करने-किन्तु सन्त जी ने बडे़ ही प्यार से उसे उठा कर आशीर्वाद दिया और उसे बोले चलो बेटा! हमारे घर चलो-हम तुम्हें कुछ भी न कहेंगे। तनिक भी हम से भय नहीं खाओ।

अबु उस्मान जी उस बच्चे को घर ले गये उसे स्नानादि कराकर नये कपड़े पहराये। उसे इस प्रकार स्वछन्द बालक से सभ्य कुमार और गँवार से सच्चा नागरिक बना दिया। एकान्त में उसे बिठलाकर उस्मान समझाने लगे। देखो! तुम एक ऊँचे कुल के पुत्र हो तुम बुरी संगत में पड़ कर कहां से कहां नीचे की ओर जा रहे थे। अब अपने मनुष्य-जन्म का आदर करो-भगवान् की इबादत में सुख है। इस जीवन को निष्फल न बनाओ।

यह है सन्त वृत्ति-अविद्या के अन्धकार में फँसे हुए जीव को सन्मार्ग दर्शाना।


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