देह की क्षणभंगुरता
भगवान श्री कृष्ण चन्द्र जी ने देखा कि इस समय अर्जुन सम्बन्धियों के देहस्वरूप को ही सत्य मान बैठा है। देह के मिटने से सर्वस्व मिट जायेगा-केवल यही इसे सूझ रहा है। तब उन्होंने देह की अनित्यता तथा आत्मा की नित्यता के विषय में उपदेश देना आरम्भ किया।
कुमार युवा वृद्धावस्था, रूप बदलते जिस तरह।
देह भी होती परिवर्तित, अन्य देह में इस तरह।।
भिन्न-भिन्न शरीरों में, जब आत्मा ही व्याप्त हो।
धीर पुरूष मोहित न होते, अन्य देह जब प्राप्त हो।।
जिस प्रकार बालपन, यौवन, तथा वृद्धावस्था-ये अवस्थाएं देह में स्वयं ही परिवर्तित होती जाती हैं, इसी प्रकार जीवात्मा भी एक देह को त्यागकर दूसरी देह को धारण करती है। आत्मा जब-जब भिन्न-भिन्न शरीरों में जाती है धैर्यवान पुरूष मोहित नहीं होते।
आत्मा की नित्यता
तात्पर्य यह कि आत्मा नित्य है, अजर, अमर, अजन्मा है किन्तु इसकी नित्यता की सूझ-बूझ केवल उन्हीं को प्राप्त है, जिन्होंने महापुरूषों की कृपा से आत्म-तत्व की पहचान कर ली है। आत्म-तत्व की पहचान होने पर ही उन्हें भिन्न-भिन्न शरीरों में आत्मा के जाने पर दुःख की अनुभूति नहीं होती।
आगे भगवान पुनः कथन करते हैं :-
अविनाशी नित्य रूप है आत्मा, केवल देह है क्षणभंगुर।
शोक तज कर उठ तू अर्जुन, युद्ध कर होकर निडर।।
भगवान कथन करते हैं कि आत्मा अविनाशी है अर्थात् इसका विनाश नहीं होता, केवल शरीर ही क्षणभंगुर है। इसलिये ऐ अर्जुन! तू निडर होकर युद्ध कर। तेरा यह कहना कि मै स्वजनों तथा माननीय पुरूषों का वध कैसे करूं, उनको मारने से मुझको पाप का भागी बनना पडेगा-मिथ्या भ्रम है, क्योंकि अन्याय के मार्ग पर चलने वालों का अथवा आसुरी एवं पाश्विक शक्तियों का वध करने में कोई दोष नहीं है, प्रत्युत क्षत्रिय होने के नाते यह तेरा धर्म है।
Lord Shri Krishna Chandra saw that at this time, Arjuna is believing his body as true. With the erasure of the body, everything will be erased - only this is what it is thinking. Then he started teaching about the impermanence of the body and the continuity of the soul.
Kumar Young old age, changing the way.
The body also changes, in other bodies like this.
In different bodies, when the soul is present.
Dheer men are not fascinated, when other bodies are received.
Just as childhood, youth, and old age - these states change themselves in the body, similarly the individual soul leaves one body and takes on the other body. Patient men are not fascinated whenever the soul goes into different bodies.
It means that the soul is eternal, ajar, immortal, unborn, but the idea of its continuity is available only to those who have identified the self-essence with the grace of great men. They do not feel sadness when the soul goes into different bodies only after the self-essence is identified.
God further states: -
The soul is the eternal form, only the body is fleeting.
Arjun, you woke up mourning, fearless in battle.
God states that the soul is imperishable, that is, it is not destroyed, only the body is fleeting. That's why Arjun! You fight fearlessly. To tell you how to kill relatives and honorable men, by killing them, I will have to become a partaker of sin - it is a false illusion, because there is no fault in killing those who walk the path of injustice or demonic and supernatural forces, Being a direct Kshatriya, this is your religion.
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