भगवान श्री कृष्णचन्द्र जी भी शरणागत अर्जुन को धैर्य देते हुए कथन करते हैं-
मरे हुये हैं पहले ही ये, युद्ध में खडे हुये जो वीर।
निमित्त बन युद्ध कर तू अर्जुन, बन विजयी न हो अधीर।।
भीष्म द्रोणाचार्य व जयद्रथ, कर्ण आदि का कर संहार।
मुझसे मारे गये हैं ये सब, केवल इन पर कर प्रहार।।
ऐ अर्जुन! ये शूरवीर तो पहले से ही मेरे द्वारा मारे गये हैं, इसलिये तू निडरता से युद्ध करके तथा शत्रुओं को जीत कर धन धान्य-सम्पन्न राज्य का उपभोग कर। तू तो केवल निमित्तमात्र है। इन द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह, जयद्रथ तथा कर्ण आदि योद्धाओं को, जो मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं, तू मार और निमित्त बन। तब तू निस्सन्देह विजयी होगा।
तात्पर्य यह कि मन-माया तथा काम-क्रोधादिक शूरवीर सेनानी, जिनको अपने जप, तप तथा कर्म आदि साधनों के बल से वश में करना कठिन ही नहीं अपितु असम्भव है, सन्त सत्पुरूषों की शरण ग्रहण करने से तथा उनके प्रवचनों का मनन व पालन करने से वे स्वयमेव अधीन हो जाते हैं। काम-क्रोधादिक विकारों को वश में करने का भावार्थ यह है कि संसार के कार्य-व्यवहार में यथासम्भव सत्यपरक, उचित और नीतिपूर्वक कर्म करते हुए शुद्ध हृदय से जीवनयापन किया जाए।यह यथार्थ ज्ञान सन्त सत्पुरूषों की पावन संगति और उनके उपदेशों से ही प्राप्त होता है जिससे जीव असत्य पर विजयी होने में सफल हो सकता है। सत्पुरूष वह युक्ति बतलाते हैं जिससे संसार में रहते हुये तथा सांसारिक कार्य-व्यवहार करते हुए भी जीव सच्चे एवं शाश्वत सुख को प्राप्त कर लेता है। सत्पुरूष कथन करते हैं कि ऐ जीव! कभी सगे-सम्बन्धियों की आसक्ति, कभी शरीर का मोह तथा कभी विघ्नकारक ख्याल जो तेरे मार्ग में बाधक बन कर खडे हो जाते हैं-ये सब माया के ही रूप हैं, इनके धोखे में कदापि नहीं फंसना, प्रत्युत् आत्मा और शरीर की वास्तविकता को समझ कर सदैव निष्काम भाव से कर्त्तव्य-कर्म में प्रवृत्त रहना।
Lord Shri Krishnachandra, while giving patience to the refugee Arjuna, says-
They are already dead, the brave who stood in the war.
Arjuna, do not become victorious and impatient by becoming a war for instrument.
The destruction of Bhishma Dronacharya and Jayadratha, Karna etc.
All these people are killed by me, only tax on them.
Hey Arjun! These knights have already been killed by me, that is why you should fight the wealth-rich kingdom by fighting fearlessly and conquering the enemies. You are only an instrument. To these Dronacharya, Bhishma Pitamah, Jayadratha and Karna etc. warriors, who have already been killed by me, you should kill and become an instrument. Then you will surely win.
It means that mana-maya and kama-krodhika knight fighters, who are not only difficult to subdue by means of their chanting, austerity and deeds etc., are impossible, taking refuge of saintly men and meditating and following their discourses They automatically become subject to it. The meaning of subduing sex-related disorders is to live with a pure heart by doing as much truthful, fair and ethical work as possible in the workings of the world. This real knowledge is obtained only by the holy fellowship of sainted men and their teachings. From which the creature can succeed in winning over the untruth. Satpuras show the way through which living organism achieves true and eternal happiness even while living in the world and doing worldly activities. Satpurs say that you are a creature! Sometimes the attachment of relatives, sometimes the fascination of the body and sometimes the disruptive thoughts that stand in your way - they are all forms of Maya, never being caught in their deception, understanding the reality of the spirit and the body. Always be inclined to do duty-work with a senseless attitude.
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