योद्धा कहेंगे कायर बन,
भागा अर्जुन मैदान से।
धाक है जिन पर तेरी उन से,
सकुचायेगा अपमान से।।
क्षत्रिय की धर्म न्याय के संग्राम में अपने कर्त्तव्य का पालन करने में ही शोभा है। कर्त्तव्य से मुख मोडना उसके लिये कदापि उचित नहीं। इसलिये भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को युद्ध के लिये उद्यत करते हुए कथन करते हैं :-
योद्धा कहेंगे कायर बन,
भागा अर्जुन मैदान से।
धाक है जिन पर तेरी उन से,
सकुचायेगा अपमान से।।
जय पराजय लाभ हानि,
सुख दुख समझ कर समान।
युद्ध कर निष्काम भाव से,
इसी में तेरा है कल्याण।।
ऐ अर्जुन! तेरे सामने ये जो शूरवीर खडे हैं, सब यही कहेंगे कि अर्जुन कायर बनकर मैदान से भाग गया। जिन पर तेरी शूरवीरता की धाक जमी हुई है, उनके सामने अपमान से तू अपना सिर उंचा नहीं कर पायेगा। जब तेरे शत्रु वर्ग के लोग तेरी शूरवीरता की निन्दा करेंगे, तीखे व्यंग्य कसेंगे, तब तुझसे यह दुख न सहा जायेगा। क्षत्रिय धर्म में तो कायरता का कलंक मृत्यु से भी कहीं बढकर है। इसलिये उठ और युद्ध के लिये तैयार हो जा। यदि तू इस युद्ध में विजय प्राप्त कर लेगा तो राज्य-भोग प्राप्त होंगे, यदि युद्ध में प्राण भेंट हो गये तो स्वर्ग की प्राप्ति होगी। इस प्रकार के युद्ध के अवसर को भाग्यवान क्षत्रिय ही पाते हैं। ऐसा स्वर्णावसर प्राप्त कर शूरवीर बडी शान से युद्ध में प्राण न्योछावर करने को उद्यत होते हैं। पार्थ! अब इसी में ही तेरा कल्याण निहित है कि जय-पराजय, लाभ-हानि, तथा सुख-दुःख आदि को समान जानकर युद्ध के लिये तत्पर हो जा और अपने कर्त्तव्य-कर्म का पालन कर।
आचरण कर दृढता से तू,
उपदेश जो मैंने कहा।
निस्सन्देह होगा ऐ अर्जुन,
कर्म फल से तू रिहा।।
कर्म करना धर्म तेरा,
फल की इच्छा त्यागकर।
कर्त्तव्य पथ पे चलना ही,
होता सदा है लाभकर।।
ऐ अर्जुन! मैंने तुझे जो उपदेश दिया है तू उस पर आचरण कर। अपने मन के ख्यालों को दूर हटाकर जब दृढसंकल्प से कर्म करेगा तो सब प्रकार के कर्मों के फल से मुक्त हो जायेगा। कर्त्तव्य-कर्म करने से ही यश तथा विजय श्री हाथ आती है।
The religion of the Kshatriyas is adorned only in performing its duty in the struggle for justice. It is not at all appropriate for him to turn away from duty. That is why Lord Krishna, making Arjuna a war, says: -
The warrior would say be a coward,
Bhaga from Arjuna Maidan.
There is a rage on which you have them,
Will be satisfied with humiliation.
Jai Loss Profit Loss,
Equal considering happiness and sorrow.
War without merit,
In this you have welfare.
Hey Arjun! These brave men who stood before you, they would all say that Arjun ran away from the ground as a coward. You will not be able to raise your head from insult in front of those who have lost your valor. When the people of your enemy class will condemn your valor, make bitter satire, then you will not suffer this misery. In the Kshatriya religion, the stigma of cowardice is more than death. So get up and get ready for war. If you can win in this war, you will receive kingdom enjoyment, if you die in battle, you will get heaven. Lucky Kshatriyas find the opportunity of this type of war. Having attained such a golden throne, the knights are determined to sacrifice their lives in battle with great pride. Parth! Now it is your welfare that in this, knowing Jai - defeat, profit and loss, happiness and sorrow etc., get ready for war and follow your duty and deeds.
You behave strongly,
The sermon that I said.
No doubt, O Arjun,
You are released from the fruit of karma.
Do your work, your religion,
By abandoning the desire for fruit.
Walking on the duty path,
Is always beneficial.
Hey Arjun! Conduct what I preached to you. By removing the thoughts of your mind, when you do deeds with determination, then you will be freed from the fruits of all kinds of deeds. It is only by performing the duty of duty that Shri Yash and Vijay come to hand.
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