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रक्षाबन्धन क्या है और क्यों मनाया जाता है ? Raksha Bandhan Kya Hai Aur Kyon Manaya Jata hai ?

jan jagran,

रक्षाबन्धन क्या है और क्यों मनाया जाता है ? Raksha Bandhan Kya Hai Aur Kyon Manaya Jata hai ?


भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षाबंधन का पर्व श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह पर्व भाई - बहन को स्नेह के धागे में बांधता है। इस पर्व पर बहनें अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगाकर इस त्यौहार को मनाती हैं जिसका भाव भाई द्वारा बहन की रक्षा करना होता है।

रक्षाबंधन की कहानी

रक्षाबंधन से सम्बंधित पौराणिक कथाएँ इस प्रकार हैं। जिनका वर्णन नीचे किया जा रहा है। 

कृष्ण और द्रौपदी की कहानी

इतिहास मे कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमें युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की उंगली घायल हो गई थी, श्री कृष्ण की घायल उंगली को द्रौपदी ने अपनी साड़ी में से एक टुकड़ा बाँध दिया था, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट में द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था। 

राजा बलि और माता लक्ष्मी :


राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। 


इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं एक बार बलि रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया।


राजा बलि ने कहा कि जब मैं सोऊँ , जागूँ या जिधर भी मेरी नजर जाये उधर आपके ही दर्शन करूँ।  अब क्या था श्री भगवान् विष्णु जी राजा के यहाँ पाताल लोक में रहने लगे और राजा बलि को दिए गये वचन पूरे हो गए। इस प्रकार श्री भगवान् जी को पाताल में रहते काफी समय बीत गया। 


माता लक्ष्मी जी की चिंता 


श्री भगवान् के वियोग में बैकुंठ में माता लक्ष्मी जी को चिंता होने लगी।  उस दौरान नारद जी का बैकुंठ में आना हुआ। माता लक्ष्मी जी ने नारद जी पूछा कि तुम तीनों लोकों में भ्रमण करते हो क्या तुमने कहीं नारायण को देखा है ? तब नारद जी ने बताया कि नारायण तो पाताल लोक में राजा बलि के पहरेदार बने हुए हैं। 


तब लक्ष्मी जी ने नारद जी से इसका उपाय पूछा कि  श्री नारायण को वापस बैकुंठ में कैसे लाया जाय ? तब नारद ने कहा कि आप बलि को भाई बना लो और अपनी रक्षा का वचन ले लो और जब वह वचन दे तब अपने नारायण को माँग लेना। 


लक्ष्मी जी सुन्दर स्त्री के वेश में रोते हुए बलि के यहाँ पहुँची।  बलि ने कहा कि आप क्यों रो रही हो ? तब लक्ष्मी ने कहा कि मेरा कोई भाई नहीं है इसलिए मैं दुःखी हूँ। बलि ने कहा कि तुम मेरी धरम की बहन बन जाओ।  लक्ष्मी जी ने राजा बलि से अपनी रक्षा के लिए वचन ले लिया और बोली कि मुझे आपका ये पहरेदार चाहिये।  राजा बलि कहने लगा धन्य हो माता पति आये सब कुछ ले गये और माता आयी तो उन्हें भी ले गयी।  तब से रक्षाबंधन का पर्व शुरू हुआ था। इसीलिए कलावा बाँधते समय यह मन्त्र उच्चारण किया जाता है :


"येन बद्धो      राजा    दानवेन्द्रो   महाबलः। 

तेनत्वामभि बध्नामि रक्षे माचल -माचलः। "


अर्थात जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था , उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें बाँधता हूँ , जो तुम्हारी रक्षा करेगा। 


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