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जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है ? Why is Janmashtami Celebrated ? What is The History of Janmashtami ? Why is Janmashtami Important? Shri Krishna Janmashtami.

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जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है ? Why is Janmashtami Celebrated ?

 
कन्हैया का अवतार Kanhaiya Ka Avtar

कृष्ण जन्माष्टमी, जिसे केवल जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी के रूप में भी जाना जाता है, एक वार्षिक हिंदू त्योहार है जो भगवान् श्रीकृष्ण जी के जन्म के रूप में मनाया जाता है। यह हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, कृष्ण पक्ष (अंधेरे पखवाड़े) के आठवें दिन (अष्टमी) को भाद्रपद महीने में मनाया जाता है । जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अगस्त या सितंबर के साथ ओवरलैप होता है।


हिन्दू धर्म ग्रंथों में भगवान् श्री कृष्ण Shri Krishna  को भगवान् विष्णु का अवतार माना गया है। कहा जाता है कि जब त्रेता युग में भगवान श्री राम चन्द्र जी Shri Ram Chandra Ji सरयू नदी Saryu Nadi  के किनारे जल समाधि लेने के लिए पहुँचे तब भक्त महावीर श्री हनुमान जी Shri Hanuman Ji पर न रहा गया और वे फूट-फूट कर रोने लगे। 

क्योंकि प्रभु श्री राम चन्द्र जी Shri Ram Chandra Ji ने हनुमान जी को समाधि लेने से मना कर दिया था कि अभी आपको और सेवा करनी है। तब हनुमान जी तड़फ उठे और कहने लगे प्रभू ! आपके बिना मैं जीवित नहीं रह सकता, आपजी का दर्शन, आपजी की सेवा ही मेरा जीवन आधार है। 

तब  प्रभु श्री राम चन्द्र जी Shri Ram Chandra Ji ने हनुमान जी को अपने सीने से लगाया और उन्हें ढांढस बँधाया कि आप धीरज रखें मैं द्वापर युग में अवतार लूँगा और फिर आपको दर्शन होंगे। 

द्वापर युग में कंस Kans नाम का एक राजा हुआ जिसकी एक चचेरी बहन थी जिसका नाम देवकी Devki था। कंस देवकी से बहुत प्यार करता था। धीरे-धीरे देवकी बड़ी हो गयी। कंस ने देवकी का विवाह अपने मित्र वासुदेव राजा से कर दिया। 

जन्माष्टमी का इतिहास 


What is The History of Janmashtami ?

कंस ने अपनी बहन देवकी की शादी बड़ी धूम - धाम से की थी। जब वह रथ पर सवार होकर बड़ी ख़ुशी से देवकी को विदा करने के लिए जा रहा था तो रास्ते में उसे आकाशवाणी सुनाई दी कि - जिस देवकी को इतनी ख़ुशी - ख़ुशी तू विदा करने जा रहा है, उसका आठवें पुत्र के द्वारा तू मारा जायेगा। इतना सुनते ही वह घबरा गया और उसने देवकी को मारने के लिये म्यान से खडग निकाल ली।  तब वासुदेव ने  तलवार को पकड़ लिया देवकी के प्राणों की याचना की और कहा कि तुम हम दोनों को कारागार में डाल दो और मैं वचन देता हूँ कि जो भी देवकी से संतान उत्पन्न होगी वह आपको देंगे। 

कंस इस बात पर सहमत हो गया कि बहन की हत्या के पाप से भी बच जाऊँगा और अपनी भी रक्षा कर पाउँगा। यह समझ कर उसने देवकी और वासुदेव को वापस लाकर कारागार में डाल दिया। 

कंस के पिता राजा उग्रसेन Ugrasen मथुरा Mathrua के राजसिंहासन पर राज कर रहे थे। अब कंस के विचार राक्षस प्रवृत्ति में बदल गये।  कंस ने अपने पिता को राजगद्दी से हटा दिया और अपने आप राजा बन बैठा।  तथा अपने पिता को भी कारागार में डाल  दिया। 

अब क्या था ? कंस ने अत्याचारों का बांध तोड़ दिया और सारे राज्य में अत्याचार ही अत्याचार करने लगा। मानव पर क्या ऋषि-मुनियों पर भी उसने अत्याचार करने आरम्भ कर दिये। कंस का ताण्डव सीमा पार कर गया। हर ओर त्राहि - त्राहि मच गयी।  

अब मानव क्या ऋषि - मुनि भी करुण स्वर में श्री भगवान् Bhagwan को पुकारने लगे प्रभू आ जाओ - प्रभू  आ जाओ। हर तरफ से जीव प्रभू Prabhu को पुकारने लगे। 

देवकी से उत्पन्न पहली सन्तान का कंस ने वध कर दिया जिससे माँ देवकी और पिता वासुदेव बहुत दुखी हुए और भगवान के चरणों में करुण पुकार करने लगे - प्रभु आओ, प्रभु आओ। इस प्रकार कंस ने देवकी की सात सन्तान कारागार में ही मार डाली। 

Why is Janmashtami Important?


Where is the birthplace of Lord Krishna?


कन्हैया का अवतार 

भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात के बारह बजे हुआ था। जैसे ही भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो वह कमरा दिव्य प्रकाश से जगमगा उठा। माता देवकी और पिता वासुदेव की जंजीरें अपने आप टूट गयी, उस समय सब पहरेदार माया की गहरी नींद में सो गये जेल के दरवाजे अपने आप खुल गये। उस समय मूसलाधार बारिश हो रही थी। वासुदेव ने नन्हे कृष्ण को एक छाज (सूपड़ा) में रखा और जेल से बाहर आ गये। 

मूसलाधार बारिश के होते हुए वासुदेव,  बालक रूप भगवान श्री कृष्ण जी को लेकर जब यमुना के किनारे पहुंचे तो क्या देखा कि यमुना का जल उफान पर था। 

वासुदेव,  बालक रूप भगवान श्री कृष्ण जी को सूपड़े (छाज ) में बिठाकर उफनती हुई यमुना को पार करने के लिये जैसे ही यमुना में घुसे  यमुना का जल बढ़ने लगा और उनके मुँह तक आ गया तो बालक रूप भगवान श्री कृष्ण जी ने तुरन्त अपने श्री चरण कमल सूपड़े से नीचे लटका दिये। यमुना ने भगवान श्री कृष्ण जी के श्री चरण कमल स्पर्श किये और शान्त हो गयी। 

वासुदेव Vasudev यमुना Yamuna पार करके श्री कृष्ण Shri Krishna को गोकुल Gokul में अपने मित्र नन्दगोप के यहाँ ले गये।  प्रभू की लीला भगवान ने लक्ष्मी जी Lakshmi Ji को नंद के यहाँ भेज दिया और वहाँ पर नंद की पत्नी यशोदा Yashoda ने कन्या रुप लक्ष्मी को जन्म दिया। वासुदेव कृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या रूप लक्ष्मी को लेकर वापस मथुरा जेल में आ गये। 

तब कन्या के रोने की आवाज़ सुनकर जेल के पहरेदार जग जाते हैं और कंस को कन्या के जन्म लेने का सन्देश सुनाते हैं। अत्याचारी कंस यह सुनकर कि कन्या का जन्म हुआ है तो कारागार में पहुँचा और कन्या की हत्या करने लगा।  वह कन्या कंस के हाथ से छूटकर आकाश की ओर चली गयी और कंस को आकाशवाणी सुनाई दी कि हे कंस ! तेरा वध करने वाला संसार में प्रकट हो चुका है। 

कंस प्रभू को खोजने लगा कि वह  कहाँ है ? कभी गाँव - गाँव में खोजवाता है, कभी जंगलों में तो कभी वनों में खोजवाता है कि वह कहाँ है ? अब उसे भगवान रूप बालक के सिवाय कुछ नज़र नहीं आता। भगवान रूप बालक को खोजने में कंस अपनी पूरी शक्ति लगा देता है। 

Shri Krishna Janmashtami.

भक्तों की करुण पुकार सुन प्रभू ने अपनी लीला आरम्भ की। यह देख शेषनाग अवतार लक्ष्मण Lakshman बोले प्रभू ! मै भी आपके साथ जाऊँगा तब भगवान कन्हैया Bhagwan Kanhaiya ने शेषनाग को अवतार धारण करने की आज्ञा दी और बड़ा भाई बना। अपने दिये हुए सरयू नदी के वचन को पूरा किया। 

यह वचन प्रभू श्री राम चन्द्र जी ने लक्ष्मण को तब दिया था जब सरयू नदी में समाधि ली क्योंकि  छोटे थे इसलिये वह पहले जल में चले गये तब श्री राम चन्द्र जी ने वचन दिया था कि अब की बार जब मै धरती पर अवतार लूँगा तो आपसे छोटा बनूँगा। यह वचन पूरा करने के लिये हरि छोटे और लखन बड़े हुए जो भैया बलदेव के रूप में माता रोहिणी के यहाँ प्रकट हुए।  

अब प्रभू ने अपनी योगमाया से मथुरा में माता देवकी के आठवें गर्भ से जन्म लिया जिसका कंस को बड़ी बेसब्री से इन्तजार था। माता देवकी और पिता वासुदेव को जेल के सात तालों के अन्दर जंजीरों से बाँधकर रखा था।  परन्तु प्रभू की लीला कहाँ तक वर्णन हो सकती है। 

भगवान कहाँ नहीं हैं? भगवान तो इस जगत के कण - कण में समाये हुए हैं। भगवान तो अपनी लीला कर रहे थे। भगवान् की लीला भगवान् ही जानें। मानव के बस की बात नहीं। यदि हमारे लाखों मुख हों और लाखों ही जुबान हों तब भी भगवान् की महिमा का वर्णन नहीं हो सकता। वे अपनी माया स्वयं ही जानें। अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार कह सकते हैं कि इस प्रकार भगवान् श्री कृष्ण का अवतार भाद्रपद महीने की अष्टमी तिथि को हुआ। तब से लेकर आज तक जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। 



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