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ANUPAM GATHA SHRI ANANDPUR DHAM. SHRI SANT NAGAR SHRI PRYAGDHAM

Shri Sant Nagar

ANUPAM GATHA SHRI ANANDPUR DHAM. SHRI SANT NAGAR, SHRI PRYAGDHAM

Shri Sant Nagar Banane Ki Shri Mauj Kaise Uthi

श्री परमहंस अद्वैत मत के  शाश्वत ज्योतिस्स्तम्भ, परम उपकारी, जगत वन्दनीय, प्रातः स्मरणीय श्री श्री 108 श्री परमहंस अवतार जी श्री तृतीय पादशाही जी महाराज जी की आज्ञा अनुसार दिनाँक 3 अगस्त सन् 1946 ई0 को राजस्थान में एक विशाल सत्संग केन्द्र स्थापित करने के लिये एक स्थान ख़रीदा गया। अब, यह पावन स्थान "श्री परमहंस अद्वैत मत, श्री सन्त नगर"  के पवित्र नाम से विश्वविख्यात है। 


Shri Sant Nagar Rajasthan


इस वर्ष सन् 2021 ई0 में श्री सन्त नगर की स्थापना के 75 वर्ष "प्लैटिनम जुबली" के रूप में पूरे हो रहे हैं, इस उपलक्ष्य में निम्नलिखित अनुपम गाथा पावन श्री चरण-कमलों में  समर्पित है। 

                        ।दोहा। 

श्री परमहंस अवतार जी, अग  जग तारणहार। 

श्रद्धा सहित चरणार में, दण्डवत बारम्बार।

भक्ति पथ दिखलावने, प्रकट हुए कलिकाल। 

जीवों के कल्याण को, रचना रची विशाल।

                       वाणी 

चरण कमल में नित वन्दन कर, हम सब शीश झुकाते हैं। 

सतगुरु के उपकार की गाथा, गाते और सुनाते हैं।

पर उपकारी श्री सतगुरु जी, रचना बड़ी रचाते हैं। 

जगह - जगह पर कृपा करके, सोई रूहें जगाते हैं।

सत्संग केन्द्र बनाकर सबको, सत उपदेश सुनाते हैं। 

सेवा का शुभ अवसर देकर, मन को स्वच्छ बनाते हैं।

नाम का देकर दान यही तो, घट का अंधियार मिटाते हैं। 

सुमिरन करवा के सतगुरु, जीव को सुखी बनाते हैं।

अपने तन पर कष्ट उठाकर, भक्ति दात लुटाते हैं।

बिछुड़ी हुई रूहों को ये ही, अपने संग मिलाते हैं।


चरण कमल में नित्त वन्दन कर, हम सब शीश झुकाते हैं। 

सतगुरु के उपकार की गाथा, गाते और सुनाते हैं।


श्री परमहंस दयाल महाप्रभु, तृतीय रूप में प्रकटाते हैं। 

श्री आनन्दपुर धाम में प्रभु, पावन चरण छुआते हैं

सत्संग करके सबके सम्मुख, नाम का जाप कराते हैं।

भक्ति के रंग में रंग के सबको, सेवा खूब कराते हैं।

निज कर-कमलों से सतगुरु जी, भोग प्रसाद लुटाते हैं।

हर एक प्रेमी के ये प्रियतम, मन - मन्दिर में सुहाते हैं। 

एक दिन मौज में आकर सतगुरु, सबको पास बुलाते हैं। 

चरणों में बैठाकर सबको, ये श्री वचन फरमाते हैं।


Shri Anandpur Trust, Shri Sant Nagar Dhoulpur


 हमने कुछ दिन के लिये, राजस्थान को जाना है। 

सत्संग केन्द्र की जगह देख कर, जल्दी लौट के आना है।

विराज के श्री सतगुरु श्री कार में , भूमि खोज को जाते हैं। 

खींच रही जो धरती उनको , कदम वहीँ को बढ़ाते हैं।

पहुँच के धौलपुर में श्री सतगुरु , श्री कार रुकवाते हैं। 

बायीं तरफ को चलते चलो , स्वयं राह दिखलाते हैं।

श्री परमहंस अवतार जी , लीला तभी दिखाते हैं। 

तहसील बाड़ी के सलीमाबाद में , पहुँच के अति मुस्काते हैं। 

चरण छुआ कर उस धरती पर , उसके भाग्य जगाते हैं। 

आशिष देकर उस धरती को , इक दिशा में बढ़ते जाते हैं 


चरण कमल में नित वन्दन कर , हम सब शीश झुकाते हैं। 

सतगुरु के उपकार की गाथा , गाते और सुनाते हैं 


श्री सतगुरु जी सेवकों को , तुरन्त हुकम फरमाते हैं। 

इस धरती को खरीद लो , यहाँ सत्संग केंद्र बनाते हैं।

आज्ञा पाकर सब सेवकजन , सेवा में जुट जाते हैं। 

श्री कार के द्वारा सतगुरु, लौट के जल्दी आते हैं

अपने प्रियतम के दर्शन कर , प्यारा आशिष पाते हैं।

सब प्रेमीजन झूमें - नाचें , खुशियाँ सभी मनाते हैं

' नई दुनिया ' से हम हैं आये , सतगुरु जी फरमाते हैं 

श्री आनंदपुर धाम में , सब जय - जयकार बुलाते हैं 


चरण कमल में नित वन्दन कर , हम सब शीश झुकाते हैं। 

सतगुरु के उपकार की गाथा , गाते और सुनाते हैं

श्री मौज के अनुसार ही , खरीदी सब धरती।

तीन अगस्त उन्नीस सौ छियालीस , हो गयी रजिस्ट्री 


चरण कमल में नित वन्दन कर , हम सब शीश झुकाते हैं। 

सतगुरु के उपकार की गाथा , गाते और सुनाते हैं 


Shri Sant Nagar Ashram Dhoulpur Rajasthan Ki Sthapna


समय - समय पर सतगुरु जी , वहाँ पे चरण छुआते हैं। 

रेत के टीले समतल कर , धरती उपजाऊ बनवाते हैं 

सत्संग भवन , लंगर व कमरे , सबके लिये बनवाते हैं। 

सेवा सत्संग दर्शन करके , सब धन - धन भाग मनाते हैं

गुरुमुखों के प्यारे सतगुरु , लीला नई रचाते हैं। 

प्रेम सहित श्री सतगुरु स्वामी , खूब प्रसाद खिलाते हैं 

जगह - जगह से गुरुमुख आ , भक्ति का लाभ उठाते हैं। 

पर उपकारी श्री सतगुरु पर , सद बलिहारी जाते हैं 

चरण कमल में नित वन्दन कर , हम सब शीश झुकाते हैं। 

सतगुरु के उपकार की गाथा , गाते और सुनाते हैं 

श्री तृतीय पादशाही सतगुरु , श्री परमहंस अवतार जी। 

सँवरे ' नई दुनिया ' के टीले , धरती हुई गुलज़ार जी 

राजस्थान में किया स्थापित , सुन्दर तीरथ धाम जी। 

' नई दुनिया ' को दिया प्रभु , "श्री सन्त नगर" का नाम जी


चरण कमल में नित वन्दन कर , हम सब शीश झुकाते हैं। 

सतगुरु के उपकार की गाथा , गाते और सुनाते हैं 


श्री मौज के अनुसार श्री पंचम प्रभु जब जाते हैं। 

प्यारे - प्यारे दर्शन कर ,  सब गुरुमुख ख़ुशी मनाते हैं 

प्रियतम के स्वागत में प्रेमी ,  ढोल - नगाड़े बजाते हैं। 

शीश झुका कर आशिष पाकर ,  भजन प्रेम के गाते हैं 

किरपा करके प्रभु जी ,  कल्याण का भेद बताते हैं। 

श्री परमहंस अद्वैत मन्दिर , श्री शान्ति भवन बनवाते हैं 

कहीं पे सुन्दर  उपवन बन गये , कहीं खेत लहराते हैं। 

मीठे - मीठे  बेर वहाँ  के , सतगुरु भोग लगाते हैं 


चरण कमल में नित वन्दन कर , हम सब शीश झुकाते हैं। 

सतगुरु के उपकार की गाथा , गाते और सुनाते हैं 


छठे रूप में महाप्रभु " श्री सन्त नगर " जब जाते हैं। 

सारे गुरुमुख प्रेम सहित , सतगुरु का दर्शन पाते हैं 

वन्दन करके चरण कमल में , श्री गुरु महिमा गाते हैं। 

जैसे भाव को लेकर आते , झोली भर कर ले जाते हैं 

श्री परमहंस अवतार प्रभु की, यादों  में खो जाते हैं। 

सतगुरु के उपकार हैं इतने , गिनती में नहीं आते हैं 

आशीर्वाद से प्रेम - भक्ति के मन में गुल खिल जाते हैं। 

सच्चे सुख को पाकर सारे , जय - जयकार बुलाते हैं 


चरण कमल में नित वन्दन कर , हम सब शीश झुकाते हैं। 

सतगुरु के उपकार की गाथा , गाते और सुनाते हैं 


जग जीवों की खातिर जग में , रचना नई रचाते हैं। 

सत उपदेश सुनाकर सतगुरु , भक्ति की दात लुटाते हैं 

जोड़ के सुरत दयाल प्रभु से , काल से मुक्ति दिलाते हैं। 

पर उपकार को आकर जग में , पर उपकार कमाते हैं 


चरण कमल में नित वन्दन कर , हम सब शीश झुकाते हैं। 

सतगुरु के उपकार की गाथा , गाते और सुनाते हैं 


हुए पचहत्तर वर्ष हैं  पूरे , प्लैटिनम जुबली आई जी। 

इस शुभ अवसर की सतगुरु को , लाखों - लाख बधाई जी 


प्रेम - भक्ति के दाता हैं ,  श्री परमहंस अवतार जी। 

वन्दना बारम्बार करें , सब बोलेँ जय - जयकार जी 

सब बोलेँ जय - जयकार जी , सब बोलेँ जय - जयकार जी। 

सब बोलेँ जय - जयकार जी , सब बोलेँ जय - जयकार जी








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